Wednesday 29 August 2018

S.R.D.A.V पुपरी में कैरियर मार्गदर्शन कार्यशाला का आयोजन किया गया

पुपरी : शहर के सीताराम डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल में सोमवार को   डिस्कवर मल्टीप्ल टैलेंट के संस्थापक श्री आनन्द मोहन भारद्वाज   द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया,जिसमे बच्चो को ये  बताया की कैसे वो अपनी छुपी हुई प्रतिभा का सही जगह एवं पूरा पूरा इस्तेमाल करके अपने कम समय में अधिक सफलता प्राप्त कर सकते है I  उन्होंने ने आगे कहा की आज सक्सेस तो  सभी चाहते हैं, लेकिन यह सबको मिलती कहां है? और मिले भी तो कैसे ?? जब लोग  खुद उलटी दिशा में चल रहे है I लोग बस किसी तरह से सफल होना चाहते है , और उनकी  सफलता की परिभाषा है उच्च शिक्षा के बाद आच्छी सी नौकरी और मोटी सैलरी... कई बार तो यह अच्छी एजुकेशन और पर्याप्त मेहनत के बाद भी नहीं मिलती। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोग अपने लिए गलत फील्ड डिसाइड कर लेते हैं। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तब तक काफी देर हो जाती है और वे अपने कलीग्स से करियर की रेस में पीछे हो जाते हैं। इस सिचुएशन से बचने के लिए अपना गोल डिसाइड करने से लेकर सक्सेस मिलने तक हर कदम पर अपनी इंटेलिजेंस को यूज करें। अगर किसी भी कोर्स में नामांक लेने से पूर्व  बच्चे अपनी दिमागी  क्षमता से अवगत हो जाए तो वो कम  से कम समय में अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है I अगर किसी बच्चे की रूचि है की  नए जगह जाना , नए लोगो से मिलना और उनसे बात करना, तो ऐसे में उस बच्चे के किसी ऐसे क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए जिसमे काम करते हुए वो अपनी रूचि को बरकरार रख सके, वो अपनी आदतों के अनुसार अपने नौकरी का आनंद ले सके I अब देश में एक ऐसी तकनीक आ गयी है जिससे हमे बहुत छोटी उम्र में ये पता चल जाता है की हमारी क्षमता और प्रतिभा किस क्षेत्र में प्रबल है, हम उसी क्षेत्र की तैयारी करे,जिस क्षेत्र में हम जन्मजात रुप से मजबूत है I इस तकनीक का नाम है DMIT, जो की हमारी छुपी हुई क्षमताओ को उजागर करता है I छात्र-छात्राओं को हताशा अथवा निराशा का शिकार होने से बचाने के लिए  सर्वप्रथम छात्र-छात्राओं से यह पता किया जाता है कि किस तरह के विषय में उनकी रूचि हैतदनुसार ही उक्त क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों से उसे वाकिफ कराया जाता है ताकि बगैर किसी दबाव के कैरियर के चयन की स्वतंत्रता में स्वविवेक के भी पर्याप्त इस्तेमाल का मौका उन्हें मिल सके। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि मां-बाप अपने बेटे के आई.ए.एस. बनने का ख्वाब देखते है और उसी अनुसार उसकी शिक्षा पर भी बल देते है पर वह एक बिजनेंसमैन बनकर रह जाता है। कैरियर के चयन मे स्वतंत्रता न देने का ही यह नतीजा है कि उहापोह का शिकार छात्र कभी-कभार न घर का रह जाता है और न घाट का।
  D.M.I.T  द्वारा छात्र-छात्राओं की अभिरूचि जान लेने पर उन्हें स्वयं कैरियर प्लान’ बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि रूचि के किसी भी क्षेत्र विशेष में कैरियर बनाने की तमन्ना के विभिन्न रास्ते दिखा देने भर से ही छात्र-छात्राओं में उसे पूरा करने की इच्छा भी प्रबल होने लगती है। उनमें अनिर्णय जैसी स्थिति हर्गिज नहीं रहती तथा वे कैरियर विशेष के विभिन्न पहलुओं व विभिन्न रास्तों से परिचित होकर फैसला करने की स्थिति में होते हैं। अब और कंफ्यूज  रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर पर आपको  करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।  हम छात्र-छात्राओं को शिक्षा व कैरियर में उनकी अभिरूचि ही नही बल्कि उनके जन्मजात प्रतिभा व क्षमता के अनुसार यह जानकारी देते है कि वे अपने देश में उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों से किस तरह फायदा लेकर अपना भविष्य बना सकते हैं I कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए। यदि आई.ए.एस. बनना है तो अपको किस रूचि के विषय को अपना कर आसानी से कामयाबी हासिल की जा सकती हैइसका चयन भी सर्वप्रथम अत्यावश्यक है।
सीताराम डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल में बच्चो को DMIT की विशेषताओ से अवगत कराते हुए 

बच्चो ने सीखा लक्ष्य को प्राप्त करना

मुजफ्फरपुर : शहर के खबरा स्थित रेजोनेंस इंटरनेशनल स्कूल में डिस्कवर मल्टीप्ल टैलेंट के संस्थापक श्री आनन्द मोहन भारद्वाज ने बच्चो को अपनी छुपी हुई प्रतिभा के बारे में बताया आज हर मां-बाप शिक्षा को स्तरहीन बना रहे है, कुछ ही है जो बच्चों को रूचिनुसार शिक्षा दिला पाने में सफल हो पाते है I  अधिकतर माँ-बाप अपनी बुद्धि को ही आधार मान-कर बच्चों को अपने विवेक के अनुसार विषय दिलाकर उस पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित करने का दबाब बनाते है I आज समाज में प्रतिष्ठित बनने की होड़ मची होने के कारण कोई भी अपने बच्चो को दबाव-मुक्त शिक्षा नही दे पा रहे है, और उसका परिणाम ???? बस छात्र भटकाव की ओर अग्रसर हो जाता है I दबाव में रहने वाला हर विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री पास कर अपने योग्यतानुसार सही क्षेत्र में कार्य ना मिलने के कारण, वह तय नहीं कर पाता की उसका महत्त्व डिग्री के उपरांत परिवार एवं समाज में कैसे मिले?? दूसरी तरफ उम्र बढ़ते रहने के कारण उसे जो भी क्षेत्र मिलता है उसमें अपनी आजीविका शुरू कर अपने सही रूप को भूलकर बनावटी सामाजिक परिवेश को अपनाता है | आज ९०% छात्रों ने अपना जीवन इसी तरह किसी न किसी अनचाहे क्षेत्र में सिर्फ जीविका के आधार पर चुना है I ९० से १००% अंक लाने वाले छात्र भी अपने अनुसार जीवन नही बना पाते है, तथा उनका आई.क्यू बढ़िया होने के बाबजूद भी वो अपने शिक्षा को वास्तविक स्वरुप नही दे पाते है I अतः अब हमे छात्रों के मानसिक क्षमता पर आधारित शिक्षा को ही महत्त्व देना चाहिए I जानवरों की तरह बच्चों के पीछे पड़ने से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है| इसलिए शिक्षा का स्वरुप बच्चो के दिमागी क्षमाताओ के अनुसार होना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपनी गतिविधियों को अपने सही दिशा की ओर अधिक से अधिक बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें| शिक्षा प्राप्त करने पर सुविधा प्राप्त होती है तथा में प्रसन्नचित्त होने के कारण जो भी शिक्षा ग्रहण करता है, वह उसके भावी जीवन को प्रसन्नचित्त रखकर जीने का अधिकार देती है| इस तरह विद्यार्थी में किसी प्रकार का तनाव नहीं रहता तथा छात्र एवं पालको के मध्य सामंजस्य होने के कारण शिक्षा का भावी रूप दिखाई देने लगता है I
उन्होंने आगे बताया की  शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा, नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज और स्वर्णिम राष्ट्र बनाने में मदद करता है । यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते हैं । शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते हैं, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षा हमें संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है । आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमें परिवर्तन की गुंन्जा‌इश है, आज हमें मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का को‌ई मतलब नहीं है । इसलिए हमे ये समझना होगा की हम क्या पढ़ रहे है?, और क्यों पढ़ रहे है ? इस पढाई को हम अपने व्यावसायिक जीवन में किस तरह इस्तेमाल कर सकते है I आज देश में एक ऐसी तकनीक आ गयी है जिससे बच्चो को बहुत छोटी उम्र में ये बताया जा सकता है वो आगे चल कर किस क्षेत्र में सबसे अच्छा कर सकता है I इस टेस्ट का नाम है DMIT, इस टेस्ट की मदद से छुपी हुई प्रतिभा को उजागर करके बच्चो को उनके रूचि के अनुसार करियर के विकल्प दिये जा सकते है I

Resonance International School में बच्चो को DMIT से अवगत कराते हुए 

Thursday 2 August 2018

प्रेरणा v/s अनुशासन - राजेश अग्रवाल

लाइफ कोच  श्री  राजेश अग्रवाल जी 

प्रेरणा v / s अनुशासन : सफलता के क्षेत्र में किये गये  विभिन्न शोधों ने ये दिखाया है कि जो व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में एक बड़ी ऊंचाई  को प्राप्त करते हैं, वह केवल अपनी प्रेरणा से अनुशासन का शिष्य रहा है। हालांकि यह बिल्कुल सच है कि प्रेरणा हर किसी के लिए आवश्यक है, यह भी सच है कि सफल होने में अनुशासन “प्रेरणा” से  बड़ी भूमिका निभाता है। प्रेरणा कई बार  अल्पकालिक होता है I  किसी भी प्रेरक प्रसंग को सुनकर कोई  व्यक्ति प्रेरित तो हो सकता है, लेकिन अपनी प्रेरणा को  बनाये रखने के लिए, उसको अनुशासन का छात्र होना चाहिए। प्रेरित व्यक्ति एक या दो दिनों के लिए कार्रवाई में देरी कर सकता है, लेकिन अनुशासित व्यक्ति जो मुसलाधार बारिस, तपती धूप और यहां तक ​​कि  कंपकपाती  ठंड में भी अपनी दैनिक कार्रवाई में देरी नहीं करता है। अनुशासित व्यक्ति कभी भी कार्रवाई में देरी नही करता या उसे टालता नही है ।  किसी भी व्यक्ति की अन्य कोई भी कौशल, रणनीति, टिप्स या तकनीकें तभी आपके काम आयेगी जब आप अनुशासित होंगे I हम में से बहुत से  लोग जो कई बार 1 जनवरी या नए साल पर ये  प्रतिज्ञा लेते हैं, की अब  अपनि आदतों में एक बदलाव लायंगे, लेकिन वे अनुशासन की कमी के कारण जल्दी  ही छोड़ देते हैं । इसलिए दोस्तों, अब हमे खुद के बारे में यह जांचने की जरुरत है कि हम केवल प्रेरित हैं, या हम अपने प्रत्येक गतिविधि में अनुशासित है I अगर हम सिर्फ प्रेरणात्मक बाते सुनते है, और उस अनुशासित तरीके से कारवाई नही करते है तो हम जभी सफल नही हो पाएंगे I एक सर्वेक्षण के अनुसार  प्रेरणात्मक सभा में शामिल होने वाले लोगो में से केवल 3% लोग अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, क्योंकि वे अत्यधिक अनुशासित हैं। - राजेश अग्रवाल

Sunday 20 May 2018

अगर आप सचेत माता-पिता है तो इस गर्मी छुट्टी अपने बच्चो को दादा-दादी से मिलवाने जरुर ले जाए

आजकल के आधुनिक माता-पिता को लगता है की उनका बच्चा कोई कंप्यूटर है, जो मन चाहे सोफ्टवेयर इंस्टाल कर सकते है , और वो सब कुछ स्कूल/कोचिंग के भरोसे छोड़ देते है, और नतीजा क्या निकलता है ?? उनका बच्चा बर्बाद हो चूका होता है ..पहले अक्सर सुनने को मिलता था-इसे तो दादा-दादी के लाड़-प्यार ने बिगाड़ कर रखा है लेकिन आज यह उलाहने कहीं खो गए हैं। ‘हम दो हमारे दो’ के इस दौर में परिवार की व्याख्या से बुुजुर्ग गायब हो चुके हैं। एक समय था जब बचपन किलकारियां भरता, आजाद और उन्मुक्त सा इधर-उधर उछलता नजर आता था। बच्चों की इसी हंसी पर बड़े बुजुर्ग कुछ भी कुर्बान करने को हमेशा तैयार रहते थे। वे अपने पोते-पोतियों के पहरेदार बन जाते थे जिनके संरक्षण में मासूम बचपन खिलखिलाता था। परिवार में बड़े हों तो बच्चे उनसे अपनी समस्याएं और विचार बांट सकते हैं। यदि परिवार एकाकी हो तो बच्चे बाहर वालों के साथ आसानी से घुलमिल नहीं पाते। पेरैंट्स अगर वर्किंग हैं तो अकेला बच्चा क्या करे। वास्तव में दादा-दादी या नाना-नानी एक सलाहकार, दोस्त और एक मददगार की भूमिका निभाते हैं।

बड़े-बुजुर्गो के सानिध्य में रहने के फायदे-:
बच्चे को दादा-दादी से कहानियां सुन कर अच्छे संस्कार मिलते हैं। बच्चों में बड़ों का आदर करने, मिलजुल कर रहने और मिल बांट कर खाने की आदतें विकसित होती हैं। ये सभी बातें संयुक्त परिवार में रहने पर ही संभव हैं।
किसी भी तरह की तनाव की स्थिति या समस्या होने पर बड़े बुजुर्गों की मौजूदगी और उनका अनुभव एक परामर्शदाता का काम करता है।
संयुक्त परिवार में बच्चे अनुशासन और संस्कार सीखते हैं। जब आपको बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान करते देखते हैं तो वे भी यह सब अपने जीवन में अपनाने को तत्पर रहते हैं।
बड़े-बुजुर्गो के साथ नही रहने के नुक्सान-:
बच्चे गंभीर प्रकृति के हो जाते हैं क्योंकि उनसे बातें करने वाला और उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं होता।
रिश्ते और परिवार क्या होता है एक-दूसरे के साथ रहना क्या होता है, अपनों का प्यार क्या होता है आदि कुछ ऐसी कई बातें हैं जिन्हें बड़ों के सानिध्य के बिना बच्चे जान ही नहीं सकते।
एकल परिवार में बच्चे को कोई छोटी-मोटी तकलीफ हुई नहीं कि पेरैंट्स उसे डाक्टर के पास लेकर पहुंच जाते हैं। जहां घर में दादा-दादी हों वे बच्चे के माता-पिता को हौसला तो देते हैं ही साथ में घरेलू नुस्खों से बच्चे की छोटी-मोटी बीमारियों को कुछ समय के लिए छूमंतर कर देते हैं।
अगर पेरैंस्ट वर्किंग हैं तो उन्हें बच्चों को कहां छोड़ें जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। उन्हें बच्चों के लिए आया रखनी पड़ती है या क्रच में छोडऩा पड़ता है। घर में बड़े-बुजुर्ग हैं तो बच्चों को लेकर ऐसी कोई टैंशन नहीं रहती।
एकल परिवारों के बच्चे अकेले रहने में खुश रहते हैं और दूसरे के साथ एडजस्ट होना उन्हें मुश्किल लगता है। वे भीड़भाड़ वाली जगह पर भी स्वयं को असहज महसूस करते हैं।
बच्चे के उत्सुक मन में हर रोज हजारों प्रश्र उठते हैं जिनके वह उत्तर जानना चाहता है। अगर परिवार में माता-पिता के अलावा उसके दादा-दादी हों तो वह उनके साथ अपनी बातें शेयर कर सकता है जिससे उसके विचार और अधिक विकसित होते चले जाते हैं।
अगर बात की जाए दादा-दादी के साथ बच्चे के रहने की और महंगे चाइल्ड केयर सैंटर में बच्चे के एडमिशन की तो एक सर्वे के अनुसार दादा-दादी ज्यादा बेहतर हैं। जो बच्चे दादा-दादी के संरक्षण में पले थे वह केयर सैंटर में पलने वाले बच्चों की तुलना में अधिक विकसित पाए गए।
एक सर्वे के मुताबिक जिन बच्चो को बचपन में दादा-दादी या नाना-नानी का सानिध्य नही मिल पाता, ऐसे बच्चे संस्कारहिन् या कहे तो उदंड बन जाते है, जो की आगे चलकर ना सिर्फ परिवार के लिए अपितु समाज और राष्ट्र के लिए भी घातक सिद्ध होते है I
आज अगर आप गौर करे तो शहर की अपेक्षा गाँ
व में पले-बढे बच्चे ज्यादा संस्कारी और प्रतिभावान होते है, इसलिए भाग-दौर भरी इस जिन्दगी में थोडा सा समय निकालकर अपने बच्चो को गाँव जरुर घुमाए, उन्हें बड़े बुजुर्गो से मिलने का मौक़ा दे, जो शिक्षा बच्चे को बुजुर्गो से प्राप्त होती है वो दुनिया के किसी विश्वविद्यालय में नही मिलता I आज आप ये सुनिश्चित करे की इस गर्मी छुट्टी आप अपने बच्चो को गाँव ले जाकर उनको गाँव-समाज से जुड़ना सिखायेंगे, उनको दादा-दादी से मिलने का मौका देंगे .
दादा-दादी से बच्चो को संस्कार मिलता है वो दुनिया के किसी स्कूल से नही मिल सकता 

Tuesday 24 April 2018

बच्चो को मानसिक तनाव से बचाने के लिए ये जरुर बताया जाना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है...

बच्चे को तनाव से बचाने में DMIT टेस्ट मदद करता है 
मनुष्य स्वयं में एक बेशकीमती संपदा है, एक ऐसा अमूल्य संसाधन है जिसको दुनिया के किसी भी बेशकीमती चीज से बराबरी नही कर सकते, बस जरूरत इस बात की है कि उस(मानव) अमूल्य संपदा की परवरिश सही दिशा में हो, गतिशील एवं संवेदनशील हो और साथ ही परवरिस के दौरान ख़ास सावधानी बरती जाये। व्यक्ति जन्म लेता है तो वह एक खाली डब्बा मात्र है, हम उसमे जो भरेंगे,उसी अनुसार वो व्यक्ति बेशकीमती/कबाड़ा होगा, अब हमे ये फैसला करना है की हम अपने बच्चे को बेशकीमती बनाना चाहते है या कबाड़ा?
हर इंसान का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है, जन्म से मृत्युपर्यन्त, जिन्दगी के हर मुकाम पर उसकी अपनी समस्याएं और जरूरतें होती हैं। विकास की इस पेचीदा और गतिशील प्रक्रिया में शिक्षा अपना उत्प्रेरक योगदान दे सकें, इसके लिए बहुत सावधानी से योजना बनाने और उस पर पूरी लगन के साथ अमल करने की आवश्यकता है। बच्चो को पढाई प्रारम्भ करने से पूर्व ये पता होना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है? इस पढ़ाई का उपयोग वो जीवन के किस हिस्से में कर पायेगा I अगर आप अपने बच्चो को अच्छी नौकरी पाने के लिए मन लगाकर पढने को बोलते है, तो आप बच्चे के साथ अन्याय कर रहे है I जिस बच्चे को ये पता ही नही है की उसे किस क्षेत्र में नौकरी करनी है, तो फिर वो किस विषय में मन लगाकर पढ़े ??
अब हमारे सिलेबस में १०वी तक सभी विषये पढाई जाती है, तो ऐसे में बच्चे किस विषय पर अत्यधिक ध्यान दे ?? आगर आप कहेंगे की हर विषय पर बराबर ध्यान दे तो आपकी ये गलती आपके बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को बर्बाद कर देगा I इसलिए अगर आप एक सचेत माता-पिता है तो आज ही अपने बच्चे के उस विशिष्ट क्षेत्र की पहचान करे, जिसमे में उसे अत्यधिक ध्यान देना है I अपने बच्चे की छुपी हुई प्रतिभा को वैज्ञानिक पद्धति से उजागर करने के लिए अभी संपर्क करे 9471818604, 9711139259

Saturday 14 April 2018

मिथिला का एक ऐसा त्यौहार जो ग्लोबल वार्मिंग को कम करता है ..

आनंद
जुड़ शीतल के दौरान कीचड़ से खेलते लोग 
आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को झेल रहा  है, आधुनिक विज्ञान ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कोई स्थायी विकल्प खोजने में विफल रहा है, इसका मुख्य कारण ये है की ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ और सिर्फ प्रकृति के मदद से ही कम किया जा सकता है, और प्रकृति से मदद लेने के लिए हमे प्रकृति की मदद करनी होगी, और वो हम कर सकते है, पेड़ लगाकर, प्रदुषण कम करके, अपने आस पास साफ़ सफाई रखते हुए हम प्रकृति को हरा भरा रखने में अपना योगदान दे सकते है I पता नही आप लोगों में से कितनों को इस पर्व के बारे में मालूम है । निश्चित ही इस आधुनिक युग मे बहुतों को नही पता होगा । आइये थोड़ा डिटेल बताते है आपको । हमारे यहाँ आज  ग्लोबल वार्मिंग को कम करने वाला एक त्यौहार जुड़ शीतल(Stay Cold) मनाया जा रहा है, इसे सतुवाइन भी कहा जाता है, सतुवाइन सत्तू(जो की चने का बनता है, इसका सेवन करना सतुवाइन कहा जाता है), और स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी है I इस त्यौहार का वैज्ञानिक महत्व भी है. इस मौके पर चने और जौ की सत्तू खाने की परंपरा है,  क्योंकि भीषण गर्मी की शुरुवात इसी महीने से होती है, और इस मौसम में लोगों का उदर व्याधि विशेषकर वायु पित्त होने की संभावना रहती हैI वैज्ञानिक दृष्टि से जौ एवं चना को शीतल एवं वायुरोधक माना गया हैI इसलिए बैशाख मास के प्रथम दिन से ही इसका सेवन करते हैं। मिथिला में अलग-अलग रूपों में प्रकृति की पूजा की जाती है़,जुड़-शीतल भी मिथिला की संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है़ जो विलुप्त होने के कगार पर है़ गाँव में इसकी झलक मिल भी जाती है, परंतु शहरों में जुड़ शीतल का पर्व विलुप्त प्राय हो चुका है़ गाँव से सम्बन्ध रखने वाले घरों में ही इस पर्व को विधिवत मनाया जाता है। जुड़ शीतल पर्व मनाने के पीछे इसकी उपयोगिता और सार्थकता है़। दो दिवसीय इस पर्व के पहले दिन सतुआइन और दूसरे दिन धुरखेल(कीचड़ और मिट्टी से खेलना) होता है़ सतुआइन के दिन सत्तू और बेसन से बने व्यंजनों को खाने कि परंपरा है़ गरमी के मौसम में सत्तू और बेसन से बने व्यंजन के खराब होने की आशंका कम होती है़ I इसलिए सतुआइन के दिन बना खाना ही लोग अगले दिन खाते हैं, इस दिन अगले सुबह घर के बड़े छोटे के सिर पर पानी डालते हैं, माना जाता है कि इससे पूरे गरमी के मौसम में सिर ठंडा रहेगा़ पेड़ - पौधे की जड़ों में भी पानी डालने की परंपरा है. वही धुरखेल के दिन जहां पानी जमा होता है, परंपरानुसार इन स्थानों की सफाई के दौरान विनोदपूर्ण क्रिया की जाती है़ I मिथिला की प्रकृतिपूजक संस्कृति का अद्भुत पर्व है जुड़-शीतल। ग्लोवल वार्मिंग के इस दौर मे इस पर्व की उपयोगिता और सार्थकता बढ़ गई है। हम अर्थ आवर के नाम पर उन जगहों की बत्ती भी बंद कर देते हैं, जहां बिजली कभी-कभार आती है। क्या हमने कभी रसोई से निकलनेवाली ऊर्जा पर गौर किया है। क्या हमने कभी रसोई को आराम देने की कोशिश की है। नहीं... लेकिन मिथिला में एक वर्षों पुरनी परंपरा हमें ऐसा करने की प्रेरणा देती है। आज बहुत लोग इस पर्व के संबंध में नहीं जानते, मिथिला में भी यह पर्व सिमटता जा रहा है। अखबार और पत्रिका में भी इस पर्व के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उनकी भी मजबूरी है। न कोई बड़ा नेता इस पर्व को मनाता है और न ही कोई कलाकार या खिलाड़ी। ऐसे में इस पर्व के बारे में कहीं न जगह है और न ही कहीं समय। लेकिन इस पर्व की रोचकता और वैज्ञानिकता इसे मरने से बचा रखी है। अगर इस पर्व को छठ के समान प्रचारित किया जाए, तो इस अद्भूत पर्व पर पूरा विश्व फिदा हो जाएगा। मूलरूप से यह पर्व सूचिता अर्थात साफ-सफाई से संबंध रखता है। दो दिवसीय इस पर्व का पहला दिन सतुआइन और दूसरा दिन धुरखेल कहा जाता है। इस मौसम में सत्तू का भी अपना विशेष महत्व है । आम के पेड़ पर लगने वाला मंजर से टिकोला बनता है फिर उसी टिकोला से आम । इसी टिकोला और सत्तू का पहला भोग भगवान को चढ़ाने की सदियों पुरानी परंपरा है ।
कल जुड़शीतल पर्व है यानि अगले दिन लोग कीचड़ मिट्टी से भी खेलने की परंपरा है जैसे होली में रंगों से खेलते है । कल के दिन सुबह सुबह घर के बड़े बुजुर्ग परिवार के अन्य सदस्यों के ऊपर जल/पानी का हल्का छींटा मारते हैं । भगवान पर चढ़ा हुआ जल से उच्छरँगा करने को शुद्धता और आशीर्वाद माना जाता है । हलांकि  कीचड़ कादो से खेलने की यह परंपरा विलुप्त होता जा रहा है । बहुत सीमित स्तर पर सिर्फ गाँव देहात में बचा रह गया है ।गर्मी का मौसम आ चुका है । आम फल का सीज़न शुरू हो रहा है ।

एक जमाना था जब जुड़ शीतल नाम से प्रसिद्ध मिथिला के ख्याति प्राप्त पर्व धार्मिक अनुष्ठान के साथ साथ कई को समेटने में सक्षम था परंतु आज यह पर्व खुद अपनी अस्तित्व को भी सहेजने में असक्षम प्रतीत होता जा रहा है. कई कारण से यहां के लोग इस पर्व को अन्य परंपराओं की तरह भुलते जा रहे हैं। पहले जहां मिथिला के गांवों में जुड़ शीतल मनाने की कवायद 10-15 दिन पूर्व से ही आरंभ हो जाती थी।
खासकर नौजवान एवं बच्चे बांस की हस्तनिर्मित पिचकारी बनाने व उस पिचकारी को लेकर तालाबों में खेलने की तैयारी में जुट जाते थे। गांव के नौजवान एवं बच्चे दो टोली में बंट कर तालाबों के पानी में पिचकारी से एक दूसरे के ऊपर पानी उड़ेलने का खेल खेलते थे तो बड़े बुजुर्ग अपने अपने घरों के आसपास की कीचड़ की सफाई व तालाबों एवं कुआं की उड़ाही का कार्य भी खेल- खेल में संपादित करते थे। कीचड़ एवं गोबर एक दूसरे पर फेंकने की प्रथा जुड़ शीतल वर्षो से चलती आयी है। इस खेल में गांवों की महिलाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी। यह खेल सुबह के पहले पहर में खेला जाता था। माना जाता है कि इसका प्राकृतिक चिकित्सा के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण माना जाता है। जुड़ शीतल पर्व के दिन अहले सुबह घर की श्रेष्ठ महिला द्वारा सभी सदस्यों के माथे को पानी से शिक्त किया जाता है. जिसे जुड़ाया जाना कहा जाता है। कहा जाता है कि परिवार के बड़ों के आशीर्वाद से लोग पूरे साल खुशहाली की जिंदगी जीते हैं। विभिन्न ग्रंथों में इसकी चर्चा है. वहीं इस परंपरा को निभाये जाने के बाद हर कोई तमाम पेड़ पौधे की सिंचाई में जुट जाते हैं।

माना जाता है कि गरमी की बढ़ती तपिश से बचाने के लिए हर कोई संकल्पित है। फिर लोग नहा धोकर मिथिला की अति विशिष्ट व्यंजन कढ़ी और बड़ी के साथ चावल को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे। इसके उपरांत दो बजते बजते लोग झुंड में लाठी, भाला, बरछी, फरसा आदि से लैश होकर वन में शिकार खेलने निकल जाते थे। शिकार में शाही, खरहा सहित अन्य खाद्य पशु पक्षियों की शिकार की जाती थी। यदि शिकार नहीं मिला या लोग शिकार करने में असफल रहे तो अशुभ माना जाता था. कहीं कहीं इस विशेष पर्व की विशिष्टता को भुनाने के उद्देश्य से इस दिन दंगल एवं कुश्ती की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती थी।शाम होते ही लोग भांग एवं चीनी की शरबत पीकर मदमस्त हो जाते थे। इसके बाद गांवों में लोग भजन कीर्तन का आयोजन करते थे। परंतु अफसोस की आज कल के युवक इसे महज एक इतिहास की कहानी ही समझते हैं क्योंकि आज जुड़ शीतल पर्व की लोकप्रियता पूर्णत: धूमिल हो गयी है। या यूं कहें कि युवा वर्गो में इस पर्व को लेकर उत्साह देखा ही नहीं जाता है।

इस प्रकार मनाये जूड-शीतल 
14 को सत्तू और बेसन का पकवान बनाये जिसे 15 को भी खायें 15 को दिन में रसोई की सफाई करें, चूल्हे न जलाये 15 को सूर्योदय से पूर्व बच्चों के सिर पर पानी डाले 15 को कम से कम एक पेड में पानी डाले 15 को पानी संचयवाले स्थान की सामूहिक सफाई करे15 को तुलसी की रक्षा के लिए उसके ऊपर जलपात्र बांधे15 को अन्न दान करें, जल पात्र भेंट करें

Thursday 12 April 2018

सफलता प्राप्त करना हमारी जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि हमारा अधिकार भी है- राजेश अग्रवाल

अपने जीवन  में सफलता प्राप्त करना हमारी जिम्मेदारी ही
नहीं बल्कि हमारा अधिकार भी है।

आज दुनिया में सफल और असफल लोगो में जो सबसे बड़ा अंतर है, वो है उनकी सोच का, कोई भी व्यकित अपने शारीरिक विकलांगता से उतना कमजोर नही हो सकता, जितना की वो अपनी मानसिक विकलांगता से कमजोर हो जाता है I  दुनिया के शीर्ष व्यावसयिक हस्तियों के विचार-प्रकिया/सोचने के तरीको के बारे में श्री राजेश अग्रवाल जी कहते है:-  मैं  उन 1%  व्यावसयिक हस्तियों की मानसिकता पर विचार कर रहा था। ये 1% लोग ऐसे सभी काम आसानी से बिना सकुचाये करते हैं, जिसके बारे में ये 99%  लोग सोच भी नही पाते है, या फिर उस काम से नफरत करते हैं I आज की सबसे बड़ी समस्या ये है की ये  99% अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकलना ही नही निकलना चाहते है, इनको बस 10 से 6 बजे तक काम करने की आदत हो जाती है, अगर कभी इनको 6 बजे के बाद काम करने को कहा जाए तो ये ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे आपने इनसे इनका किडनी मांग लिया हो, मित्रो आपकी सफलता आपके समर्पण पर निर्भर करती है I अगर आप किसी कार्य के प्रति समर्पित नही हो सकते तो आपको सफलता के सपने देखना बंद कर देना चाहिए I इतिहास गवाह है हर सफल व्यक्ति के सफलता का राज उसका अपने व्यवसाय के प्रति समर्पण हैI ये जो 99 लोग होते है, ये भीड़ का हिस्सा बने रहना पसंद करते है I मित्रो अगर आप भीड़ का हिस्सा बनते है तो आपको काम तो मिल जाएगा, लेकिन आपकी पहचान छीन जायेगी, इसलिए फैसला तुरंत करे की आपको भीड़ का हिस्सा बने रहना है, या फिर अपनी अलग पहचान बनानी है I ये 99 लोग अपने कार्य क्षेत्र से निकलते ही अपने दिमाग से सोचना बंद कर देते है,इनको नए लोगो से मिलना पसंद नही होता है, जबकि दुसरे तरफ 1 % लोग सोते हुए भी आगे की योजना के बारे में सोच कर सोते है, और सुबह उठते ही उस योजना को क्रियान्वित करने की दिशा में कार्य करते है I ये ऐसी जगह जाना पसंद करते है जहाँ बांकी के 99% कभी जाना पसंद नही करते, ऐसे लोगो की सबसे बड़ी खासियत होती है की ये जितना सोचते है उतना ही अपने सोच को क्रियान्वित भी करते है, और यही इनकी सफलता का राज है I ये 1% लोग हमेशा यही सोचते है की जीवन जितना बहुमूल्य है उतना ही अल्प है, अतः इसे सही दिशा में सही योजना के साथ व्यतीत करते है I वे विचारक की स्थिति में कम हैं, और अधिक कार्यवाही करते हैं। उन्हें पता है कि सफलता के लिए केवल एक ही जीवन है, इसलिए वे किसी भी सीमा में नही बंधते है I अब आप ये तय करले की आप कौन से समूह में है या रहना पसंद करते है I

Monday 2 April 2018

ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से अनजान ना बने रहे, इसे गंभीरता से ले, क्योंकि इसका कोई इलाज नही है-राजेश अग्रवाल


ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते कुप्रभाव से धरती पिघलने लगी है ।
ग्लोबल वार्मिंग – एक ऐसा विषय जिसने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। अगर आप अभी तक ग्लोबल वार्मिंग के कुप्रभावो से अनजान है तो इसे ऐसे समझिये की ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है, दुनिया भर के वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेगी और मौसम का मिज़ाज पूरी तरह बदल जायेगा, ऐसा इसलिए होगा की मानव आधुनिकीकरण के आड़ में लगातार प्रकृति से छेडछाड़ कर रहा है। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया की कितनी बड़ी समस्या है, यह बात एक आम आदमी समझ नहीं पाता है। उसे ये शब्द टेक्निकल लगता है। इसलिये वह इसकी तह तक जाने की बजाय अपने रोजी-रोटी में व्यस्त रहता है, और इसे एक वैज्ञानिक परिभाषा मानकर छोड़ दिया गया है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि फिलहाल संसार को इससे कोई खतरा नहीं है, लेकिन ये विषय इतना भयानक है की समाज के सभी बुद्धिजीवीयो को सोचने पर मजबुर कर दिया है। अभी तक भारत में ग्लोबल वार्मिंग शब्द समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुँच पाया है, लेकिन विज्ञान की दुनिया की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं। ये 21वी शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरने वाला है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है। आज मोटिवेशनल स्पीकर एवं लाइफ कोच श्री राजेश अग्रवाल जी ग्लोबल वार्मिंग पर अपना विचार साझा कर रहे है, आइये जानते है इस विषय पर उनका क्या कहना है । कई बार यह मेरे दिमाग में आता है कि अभी तक जो ग्रह मानव से मुक्त है, और पूरी तरह से अपने प्राकृतिक स्वरूप में है, यानी की जैसी बनायीं गयी थी, वैसी ही है, क्योंकि वहां अभी तक आधुनिक मानव नही पहुंचा है, इसलिए कोई छेड़छाड़ नही हो पाया है, वो कभी ग्लोबल वार्मिंग का सामना नहीं करेगा। ये ग्लोबल वार्मिंग हमारे द्वारा धरती पर किये गये अत्याचारों का नतीजा है । कई वैज्ञानिक मेरे विचारो से असहमत हो सकते हैं, क्योंकि मेरे पास कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं, लेकिन मुझे लगता है कि अगर कभी प्रकृति की अदालत लगेगी, तो पता नहीं कि हम मनाव किस तरह की सजा के हकदार होंगे। हमें ये भी नही पता कि जब कोई मिसाइल ओजोन परत में जाता है तो किस प्रकार हमे प्रभावित करता है। आज दुनिया वैश्विक शांति की बात तो करती है लेकिन साथ में नित्य नए मिसाइल बनाते जा रहे है। हम प्रतिदिन इस रफ़्तार से नए नए मिसाइल बनाते जा रहे है की अब वह दिन दूर नही जब हम खुद ही पूरी दुनिया को बर्बाद कर देंगे। ये परिस्थिति वास्तव में बहुत ही भयावह है और अब विश्व के सभी राष्ट्रों को एकसाथ मिलकर इस धरती माता को बचाने के लिए सभी विनाशकारी हथियारों को त्याग देना चाहिए। मै उस भयानक परिवेश के कल्पना मात्र से सिहर उठता हूँ, क्योंकि वो परिस्थिती इतनी विकराल होगी, की उस समय कुछ भी सोचने का वक्त हमारे पास नही होगा, अतः हमे अभी और आज से ही इस प्रकृति को बचाने के हर जरुरी प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे कम किया जा सकता है। हमें अपने धरती माता को सही मायनों में ग्रीनबनाना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगे। मै आज आप सबसे एक विनती करना चाहता हूँ की आपके घर में जब भी कोई मंगल कार्य हो तो उसकी निशानी एक पेड़ लगाकर संजोये, अगर आप शहर में रहते है और आपके पास पेड़ लगाने के लिए जमीन नही है तो आप ये सुनिश्चित करे की आपके लिए आपका प्रतिनिधि आपके गाँव या जहां भी आपको सुविधा हो वहां एक पेड़ लगाये, और साथ में आप उस पेड़ के समुचित विकास की भी व्यवस्था करे, क्योंकि ये बड़े बड़े काम्प्लेक्स और फ्लैट्स हमारे किसी काम नही आयेंगे जिसके सौन्दर्य में हम लाखो करोड़ो खर्च कर देते है । हमे ये समझना होगा की हमारे घर का सौन्दर्य महंगे टाइल्स और कालीन से नही बल्कि हरे भरे पेड़ और स्वच्छ प्रकृति से है ।

Sunday 1 April 2018

सफल जीवन की कामना तो सभी करते है, पर कितने लोग सफल हो पाते है, आइये जानते है श्री राजेश अग्रवाल जी से


मोटिवेशनल स्पीकर और लाइफ कोच श्री राजेश अग्रवाल जी कहते है की जीवन में लक्ष्य दो प्रकार के होते है-: लक्ष्यों को जीवित करना, और लक्ष्य को पुनर्जीवित करना।    दैनिक जीवन के लिए भोजन प्राप्त करने में व्यस्त रहना जीवित लक्ष्य कहा जाता है, वही दैनिक जीवन से परे हटकर कुछ अलग सोचना और उसको प्राप्त करने के लिए मेहनत करना  लक्ष्य को पुनर्जीवित करना कहलाता है । विद्यार्थी जीवन में हर किसी का कुछ न कुछ लक्ष्य होता है, पर ये बहुत ही दु:खद है की 95% लोग विदार्थी जीवन के दौरान उचित मार्गदर्शन के अभाव में आगे चलकर दाल-रोटी तक में ही सिमित रह जाते है I उनको अपने सपनो के बारे में सोचने का वक्त तो होता है पर वो सोचना ही नही चाहते है। ऐसे  लोगो की हमेशा यही शिकायत रहती है, की ऑफिस के कार्यो में इतना व्यस्त हूँ की ये सब सोचने के लिए समय ही नही बचता, और फिर ये  नौकरी करते हुऐ रिटायर हो जाना ही अपने जीवन का लक्ष्य समझ लेते है । ऐसे लोगो के लिए हमारी सहानुभूति है I हम इस दुनिया के हर व्यक्ति को आर्थिक व मानसिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध है I इस प्रकृति ने सबको एक समान प्रतिभा तो नही दिया है, लेकिन सबको एक सामन अवसर जरुर दिया है अपने सपनो को साकार करने के लिए I
आज के प्रतिस्पर्धात्मक जमाने मे दो तरह के लोग होते है, पहले वो जिनके खुद के सपने होते है, और वो अपने सपने को पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजर जाते है, और दुसरे वे जिनके खुद के कोई सपने नही होते और वो दुसरे के सपनो को पूरा करते करते गुजर जाते है। एक अनुसन्धान के अनुसार सिर्फ 5% लोग अपने सपनो को पूरा करने के लिए दुनिया के 95% लोगो को इस्तेमाल करे रहे है, क्योंकि इन 95% लोगो के खुद के कोई सपने नही है, और अगर है भी तो उसको पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध नही है । 
मित्रो अगर आप अपने लक्ष्यों को पुनर्जीवित करना चाहते है तो सबसे पहले अपने सभी सपनों की एक सूची बनाये जो आप अगले 5-10 वर्षों में प्राप्त करना चाहते हैं, यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की आपके सपने आपके क्षमतानुसार/वास्तविक ही होना चाहिए I अब आप प्रत्येक दिन अपने लिस्ट को देखकर ये निश्चित करते चले की आप अभी भी अपने सपनो के रास्तो पर है, अगर अपने सपनो को पूरा करने में कठिनाई हो रही हो तो अपने तरीके बदले, इरादे नही I इतिहास गवाह है की दुनिया में वही लोग सफल हो पाते है जो अपने सपनो को पूरा करने हेतु एक निश्चित समाय सीमा निर्धारित करते है, अगर आपने सपनो का लिस्ट तो बना लिया, और अपने तरीके नही बदले, तो आपको सफल होने में बहुत वक्त लग सकता है, और ऐसा भी हो सकता है की आप कभी सफल ही ना हो पाए, इसलिए ये बेहद जरुरी है की हमे अपने कमजोरियों और मजबूतियो के बारे में जानकारी हो I हर इन्सान की कोई ना कोई कमजोरी/मजबूती होती है, अक्सर हम अपने कमजोरियों से अनजान होते है और एक ही गलतियों को बार बार दुहराते है,अगर आप एक बार अपनी कमजोरियों को पहचान ले तो आपकी सफलता की यात्रा और आसन हो जायेगी I इस आधुनिक युग में अब ऐसे तकनीक भी मौजूद है जो आपकी मानसिक क्षमता और प्रतिभा के साथ साथ आपकी कमजोर/मजबूत क्षेत्र को उजागर करता है, तो अब देर किस बात की, अभी कॉल करे 9471818604, और अपने कमजोर/मजबूत क्षेत्र के साथ साथ अपनी छुपी हुई प्रतिभा को उजागर करे I अमेरिका, जापान, चीन, कोरिया समेत विश्व के कई देश इस आधुनिक विज्ञान की मदद से अपने छात्रो के क्षमता का सही जगह पूरा पूरा उपयोग कर रहे है I
ये लेख पढने के बाद मुझे आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है की आप भी अब अपने सपनों की एक सूचि बनायेंगे और अपने छुपी हुई प्रतिभा और कमजोरियों को उजागर करने हेतु आगे आयेंगेI
आपको मेरी तरफ से और राजेश सर के तरफ से अग्रिम शुभकामनाये, अगर आपको ये लेख अच्छा लगा तो अपने उन मित्रो से भी शेयर करे जिन्हें आप वास्तव में सफल होते देखना चाहते है I

Saturday 31 March 2018

आपकी लापरवाही और जिद आपके बच्चे के भविष्य को बर्बाद कर सकती है, अगर आप एक सचेत माता पिता है तो जरुर पढ़े...

मनुष्य स्वयं में एक बेशकीमती संपदा है, एक ऐसा अमूल्य संसाधन है जिसको दुनिया के किसी भी बेशकीमती चीज से बराबरी नही कर सकते, बस जरूरत इस बात की है कि उस(मानव) अमूल्य संपदा की परवरिश सही दिशा में हो, गतिशील एवं संवेदनशील हो और साथ ही परवरिस के दौरान ख़ास सावधानी बरती जाये। व्यक्ति जन्म लेता है तो वह एक खाली डब्बा मात्र है, हम उसमे जो भरेंगे,उसी अनुसार वो व्यक्ति बेशकीमती/कबाड़ा होगा, अब हमे ये फैसला करना है की हम अपने बच्चे को बेशकीमती बनाना चाहते है या कबाड़ा?
हर इंसान का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है, जन्म से मृत्युपर्यन्त, जिन्दगी के हर मुकाम पर उसकी अपनी समस्याएं और जरूरतें होती हैं। विकास की इस पेचीदा और गतिशील प्रक्रिया में शिक्षा अपना उत्प्रेरक योगदान दे सकें, इसके लिए बहुत सावधानी से योजना बनाने और उस पर पूरी लगन के साथ अमल करने की आवश्यकता है। बच्चो को पढाई प्रारम्भ करने से पूर्व ये पता होना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है? इस पढ़ाई का उपयोग वो जीवन के किस हिस्से में कर पायेगा I अगर आप अपने बच्चो को अच्छी नौकरी पाने के लिए मन लगाकर पढने को बोलते है, तो आप बच्चे के साथ अन्याय कर रहे है I जिस बच्चे को ये पता ही नही है की उसे किस क्षेत्र में नौकरी करनी है, तो फिर वो किस विषय में मन लगाकर पढ़े ??
अब हमारे पाठ्यक्रम में दशवी तक सभी विषये पढाई जाती है, तो ऐसे में बच्चे किस विषय पर अत्यधिक ध्यान दे ?? अगर आप कहेंगे की हर विषय पर बराबर ध्यान दे तो आपकी ये गलती आपके बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को बर्बाद कर देगा I अपने बच्चे के कमजोर क्षेत्र को लेकर चिंतित होने से बेहतर है अपने बच्चे के मजबूत क्षेत्र की पहचान कर खुश रहे I इसलिए अगर आप एक सचेत माता-पिता है तो आज ही अपने बच्चे के उस विशिष्ट क्षेत्र की पहचान करे, जिसमे में उसे अत्यधिक ध्यान देना है I अपने बच्चे की छुपी हुई प्रतिभा को वैज्ञानिक पद्धति से उजागर करने के लिए अभी संपर्क करे 9471818604, 9711139259

Tuesday 6 March 2018

अगर आपको आगे बढ़ना है तो हर दिन कुछ ना कुछ नया सीखना होगा...

आज के प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में आगे बढ़ने के लिए जरुरी है प्रतिदिन कुछ ना कुछ सीखते रहना, अगर आपको जीतना है तो आपको सीखते रहना होगा, क्योंकि सीखना बंद तो जीतना बंद, अब फैसला आपको करना है I
हर इन्सान जीवन में कोई भी नई चीज दो तरीके से सीखता है, पहला किसी काम को प्रैक्टिकल करके, और दूसरा उस काम के एक्सपर्ट से समझ के, अब अधिकतर लोग पहले वाले तरीके से सिखने की कोशिश करते है, यानी की वो बिना किसी एक्सपर्ट के खुद से सीखना चाहते है, और इसमें वर्षो बीत जाते है उनको सीखते हुवे,फिर भी वो पूरी तरह नही एक्सपर्ट नही बन पाते, और अंत में सीखना ही बंद कर देते है, वही बुद्धिमान लोग एक्सपर्ट की राय लेकर उसी चीज को जल्दी से समझकर उसका फायदा अपने करियर में उठाते है I अब फिर फैसला आपको करना है, खुद से सीखना है या एक्सपर्ट से समझना है ?
अब तक कहा जाता था की "जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवी" हमने इसमें एक लाइन और जोड़ दिया है, "जहाँ न पहुंचे कवि, वहां पहुंचे अनुभवी"

इसलिए आइये और हमारे अनुभवी एक्सपर्ट से नि:शुल्क परामर्श के लिए अभी कॉल करे 9871949259,9471818604,9971543314चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोगकोई भी स्वचालित वैकल्पिक पाठ उपलब्ध नहीं है.

Tuesday 23 January 2018

मित्रो आज नेताजी की 121वीं जयंती है, तो आइये जानते है उनका संक्षिप्त जीवन परिचय

मित्रो आज नेताजी की  121वीं जयंती है, तो आइये जानते है उनका   संक्षिप्त जीवन परिचय , नेताजी  सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। उनके पिताजी  जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस  ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और शीघ्र भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए। सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। वास्तव में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। महात्मा गाँधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गाँधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी। 1939 में बोस पुन एक गाँधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए। गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया। उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे। गाँधी जी के विरोध के चलते इस 'विद्रोही अध्यक्ष' ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की। गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी। इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नज़रबंद कर लिया लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले। वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे। सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे। यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का। नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे। वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे। भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है। सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई  जो वर्तमान में जर्मनी में सपरिवार रहती हैं। नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी। नेताजी' के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की तथा 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया। 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है। हम उनको आज श्रधा सुमन आर्पित करते है .

Thursday 11 January 2018

क्या आप इस आधुनिक GPS के बारे में जानते है ??

हम आपकी क्षमता के अनुसार आपको रास्ता बताएँगे 
आज के प्रतिस्पर्धा के इस दौर में प्रत्येक माँ बाप का यह 
स्वपन होता हैं कि उनका बच्चा बुद्धिमान हो,
उच्च अभ्यास करने वाला हो और समाज में उच्च स्तर 
प्राप्त करने वाला बने। यह बच्चा क्या 
अभ्यास करेगा, उसका भविष्य कैसा होगा आदि जानकारी
 के प्रति ज्यादा उत्सुकता रहती है, 
और अगर यह जानकारी बच्चे कि बाल्यावस्था में या 
अभ्यास के महत्वपूर्ण पड़ाव के पहले मिल 
जाये तो माँ बाप इस बहुमूल्य जानकारी का सही उपयोग 
करके अपने बच्चे को सही मार्गदर्शन, 
प्रोत्साहन एवं योग्य क्षेत्र में शिक्षा दिलाने का अच्छा प्रबंध करके उनके श्रेष्ठ भविष्य निर्माण में 
सहयोग कर सकते हैं
मित्रो आजतक पुरे विश्व में सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व बिहार से ही हुवे है और निरंतर हमारे बिहार के बच्चे हर क्षेत्र में बिहार का नाम रौशन कर रहे है, परन्तु यह संतोषजनक नही है क्योंकि हजारो युवा अपने जीवन में उचित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहते है , और उसका कारण है सही समय पर बच्चो को उचित मार्गदर्शन नही मिल पाना, बच्चे अपनी क्षमता के अनुसार करियर नही बना पाते जिसका नतीजा उन्हें जीवन भर किसी ऐसे कार्य को करते हुवे बिताना पड़ता है जिसमे उनका कोई रूचि ही नही है I आज विज्ञान के ज़माने में जापान की DMIT टेस्ट पद्धति  बच्चो के लिए GPS(ग्लोवल पोजिशनिंग सिस्टम) का काम करती है, इसके मदद से बच्चे अपने क्षमतानुसार अपने करियर का चुनाव कर आसानी से अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते है I आपसे अनुरोध है की इस साल के बजट में बिहार के हर माध्यमिक विद्यालय के लिए कम से कम एक काउंसलर की नियुक्ति की जाए जो की इस वैज्ञानिक पद्धति के मदद से बच्चो को उनके जीवन का  सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रदान करे I
पिछले कई सालों से इस प्रकार का मार्गदर्शन ज्योतिषशास्त्र की विभिन्न विधियों से किया जाता है
 लेकिन इस विधि में एक सामान रूपता नहीं पायी जाती है I इसलिए इस विधि में पूर्णतया विश्वास 
करना थोडा कठिन होता है। परन्तु अब इस महान वैज्ञानिक विधि से फिंगर प्रिंट के माध्यम से बहुत 
ही आसानी से, पूर्णतया सटीक मार्गदर्शन मिल सकता है। 
इसे ही Dermatoglyphics Multiple Intelligences Test (D.M.I.T) कहा जाता है।
इस वैज्ञानिक परिक्षण से किसी भी व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की बुद्धि की जानकारी प्राप्त करके, उसमें क्या अच्छाईयाँ व् कमियां हैं, उसका स्वभाव, व्यवहार, पठन की रूचि, याद करने की क्षमता आदि कई पह्लुयों को जाना जा सकता है। इस जानकारी का उपयोग करके अपने बच्चे के लक्ष्य प्राप्ति में उपयुक्त कार्यवाही कर सकते हैं।