दुनिया का हर विकसित राष्ट्र या
यु कहे समझदार देश अपने कुल जीडीपी का लगभग २-१०% हिस्सा शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करता है
I दुर्भाग्यवश हमारा देश ऐसे भ्रष्ट व्यवस्था के चपेट में है जो शिक्षा व्यवस्था को
पूरा पूरा बर्बाद कर दिया है I ऐसे में हमारे देश में हर वर्ष लाखो
प्रतिभाशाली बच्चे इस भ्रष्ट तन्त्र को
झेलते झेलते आत्महत्या कर लेते है और जो बचते है वो अपना लक्ष्य बदलकर कुछ और करने
लगते है, और ये पुरे देश का नुकसान है क्योंकि उस देश को चलाने वाला सही व्यक्ति
सही जगह नही पहुँच पा रहा है I ऐसे में भारत
को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए शिक्षा क्षेएत्र में अनुसंधान कार्य की आवश्यकता
है। अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण और सविचार प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य ज्ञान को
बढ़ाना और परिमार्जित करउपयोगी बनाना है। मानव ज्ञान के विकास के लिए अनुसंधान
अत्यावश्यक है और तभी जीवन का विकास संभव है। अनुंधान एक उद्देश्यपूर्ण बौद्धिक
क्रिया है, इसकी प्रक्रिया वैज्ञानिक होती है।
शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान वह
प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं
का अध्ययन अपने निर्णय और क्रियाओं मे निर्देशन, सुधार
और मूल्यांकन करते है। शिक्षा के क्षेत्र में समस्यायें बहुत है। क्रियात्मक
अनुसंधान कक्षा कक्ष की विभिन्न स्थितियों की समस्याओं का हल खोजने, निदानात्मक
मूल्यांकन और उपचारात्मक उपाय करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण, उपयोगी
और सामयिक सिद्ध होता है। निःसंदेह शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का लक्ष्य नवीन
शैक्षिक ज्ञान की खोज है जो उन समस्याओं को हल करने हेतु अनुसंधान शिक्षा के
क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं के निदान एवं उपचार में पर्याप्त
सीमा तक उपयुक्त एवं कारगर सिद्ध होता है। क्रियात्मक अनुसंधानों का अभिप्रयास उन अनुसंधानों से है जिनका
प्रमुख उद्देश्य शिक्षण संस्थानों की व्यावहारिक समस्याओं का हल खोजना है। शिक्षण
के क्षेत्र में अब तक प्रायः मौलिक अनुसंधान एवं व्यावहारिक अनुसंधान होते आए हैं।
इन दोनों प्रकार के अनुसंधानों में अनुसंधानकर्ता के लिए विद्यालय के जीवन से
प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होना आवश्यक नहीं है। इस समस्या को हल करने के लिए
शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का विकास हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में
क्रियात्मक अनुसंधान का विचार सबसे पहले अमेरिका के कुछ शिक्षाशास्त्रियों द्वारा
आरंभ किया गया था। इसमें प्रमुख रूप से कोलियर, लुइन, हेरिकन
और स्टोफेन कोरे शामिल थे। स्टोफेन कोरे के मुताबिक क्रियात्मक अनुसंधान का
अभिप्राय उस प्रतिक्रिया से है जिसके द्वारा अभ्यासकर्ता अपने निर्णयों तथा
प्रतिक्रियाओं का पथ-निर्देशन एवं मूल्यांकन करने के लिए अपनी समस्याओं का
वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के प्रयत्न करते हैं। किसी भी व्यवस्था को भली प्रकार संचालन के लिए उसके सदस्य ही
उत्तरदायी होते है। उनके समक्ष समस्याएं आती है, उसकी
गहनता को कार्यकर्ता ही भली प्रकार समझ सकता है। अतः कार्यकर्ता को कार्यप्रणाली
की समस्या के चयन करने तथा उसके समाधान ढूंढने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी
वह अपने कार्य कौशल का विकास कर सकता है। कार्यकर्ता द्वारा स्वयं की कार्यप्रणाली
की समस्या का चयन करने,
उसका वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने एवं समाधान ढूंढकर
वर्तमान क्रिया में सुधार करने की प्रक्रिया को क्रियात्मक अनुसंधान कहते है।
क्रियात्मक अनुसंधान इस प्रकार
अनुसंधान की नवीनतम शाखाओं में से एक है। संक्षेप में कह सकते हैं, क्रियात्मक
अनुसंधान का अभिप्राय विद्यालय में संपादित की गई उस क्रिया है से जिसके द्वारा
विद्यालय की कार्य-प्रणाली में सुधार,
संशोधन एवं प्रगति के लिए विद्यालय के ही अभ्यासकर्ता
जैसे-शिक्षक, प्रधानाध्यापक,
प्रबंधक तथा निरीक्षक विद्यालय की समस्याओं का
वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करते हैं।
क्रियात्मक अनुसंधान में
विद्यालय की समस्याओं का विधिपूर्वक अध्ययन होता है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय
के शिक्षक, प्रधानाध्यापक,
प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान
का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है।
क्रियात्मक अनुसंधान में संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक
और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग
पर अधिक बल देते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान के उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही स्वयं
शिक्षक, प्रधानाध्यापक,
प्रबंधक और निरीक्षक होते हैं। वीवी कामत ने अपने एक लेख में (कैन ए टीचर डू
रिसर्च टीचिंग,
1975) भारत में अनुसंधान के कुछ
क्षेत्रों का उल्लेख किया,
जो इस प्रकार है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में विभिन्न आयु
वर्ग के बच्चों का शब्द भंडार,
भारत में पब्लिक स्कूल, भाषा
सीखने में भूलें,
विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की ऐच्छिक क्रियाएं।
विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की लंबाई,
भार तथा अन्य शारीरिक लक्षण, भूगोल
एवं इतिहास की अध्यापन पद्धतियां शामिल हैं। बालकों एवं बालिकाओं की अध्ययन
अभिरूचियां, कुशाग्र बुद्धि बालकों की शिक्षा, मानसिक
रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा भी शामिल करने पर जोर था। भारतीय
शिक्षाशास्त्रियों का शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान, माध्यमिक
विद्यालयों में विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों एवं छात्रों की मन पसंद क्रियाएं
(हाबीज) पर भी जोर दिया गया था। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की शैक्षिक
योग्यताएं, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की उपलब्धियों में अंतर, शिशु
विद्यालयों में पढ़े हुए तथा न पढ़े हुए बच्चों का तुलनात्मक अध्ययन की बात कही गई
थी। इन सूचियों पर गौर करने से इनमें
कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो क्रियात्मक अनुसंधान के अंतर्गत आती है। उन पर अनुसंधान
होने से शिक्षा की अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान संभव होगा और वे अनुसंधान
राष्ट्र के विकास में सहायक होंगे। शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान की समस्याओं का
स्रोत स्वयं स्कूल होता है। स्कूल की कार्य प्रणाली में प्रत्येक समस्या का उद्गम
खोजा जा सकता है। समस्या का उचित चयन करने के बाद उसके स्वरूप का विश्लेषण जरूरी
है। इसका अभिप्राय समस्या को निश्चित रूप से स्थापित करना है। ऐसा करना अनुसंधान
की सफलता के लिए आवश्यक चरण है। समस्या को परिभाषित करने के बाद उसका मूल्यांकन
करना बहुत जरूरी है। इस मूल्यांकन से अनुसंधानकर्ता को समस्या के अपेक्षित परिणाम
का ज्ञान हो जाता है। शिक्षकों,
प्रधानाध्यापकों, प्रबंधकों तथा
निरीक्षकों को क्रियात्मक अनुसंधान द्वारा कार्य करते हुए सीखने का अवसर मिलता है, जो
ज्ञान कार्य करते हुए अर्जित किया जाता है, वह अधिक स्थायी तथा
व्यावहारिक होता है।
भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के
लिए अनुसंधान कार्य की जरूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में इसकी अधिक आवश्यकता है, क्योंकि
अन्य क्षेत्रों में होने वाली उन्नति क्षैक्षिक क्षेत्र में उन्नति पर अवलंबित
रहती है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा में कुछ नवीन और विशिष्ट अनुसंधानों किए जाने
आवश्यक है। इन अनुसंधानों में क्रियात्मक अनुसंधान को प्रमुख स्थान देना होगा, क्योंकि
इस प्रकार के अनुसंधानों का स्कूलों की गतिविधियों तथा कार्य करने वाले व्यक्तियों
से प्रत्यक्ष संबंध होता है। हमारे स्कूल और शिक्षा तब तक परंपरागत लीक पर ही कायम
रहेंगे जब तक शिक्षक,
शैक्षिक प्रशास, अभिभावक और खुद छात्र
इसका मूल्यांकन नहीं करेंगे। शिक्षा में यदि कोई विकास की दिशा दिखाई दे रही है
शिक्षित व्यक्ति विद्यालय से बाहर आकर समाज एवं कार्यक्षेत्र में अपने को स्थापित
नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति के लिए शिक्षा को जवाबदेह माना जाता है, इसलिए
इसमें सुधार होना आवश्यक है। इस लिहाज से सभी के सहयोग से क्रियात्मक अनुसंधान किया
जाना आवश्यक है। खुद छात्र भी क्रियात्मक अनुसंधान से लाभांवित होंगे। साथ ही वे
इसमें सहयोग और अपनी शैक्षिक क्षमता तथा योग्यता विकसित करने के लिए प्रेरित
होंगे।
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