जुड़ शीतल के दौरान कीचड़ से खेलते लोग |
आज पूरा
विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को झेल रहा
है, आधुनिक विज्ञान ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कोई स्थायी विकल्प
खोजने में विफल रहा है, इसका मुख्य कारण ये है की ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ और सिर्फ
प्रकृति के मदद से ही कम किया जा सकता है, और प्रकृति से मदद लेने के लिए हमे
प्रकृति की मदद करनी होगी, और वो हम कर सकते है, पेड़ लगाकर, प्रदुषण कम करके, अपने
आस पास साफ़ सफाई रखते हुए हम प्रकृति को हरा भरा रखने में अपना योगदान दे सकते है I
पता नही आप लोगों में से कितनों को इस पर्व के बारे में मालूम है । निश्चित ही इस
आधुनिक युग मे बहुतों को नही पता होगा । आइये थोड़ा डिटेल बताते है आपको । हमारे
यहाँ आज ग्लोबल वार्मिंग को कम करने वाला
एक त्यौहार जुड़ शीतल(Stay Cold) मनाया जा रहा है, इसे सतुवाइन भी कहा जाता है, सतुवाइन सत्तू(जो की
चने का बनता है, इसका सेवन करना सतुवाइन कहा जाता है), और स्वास्थ्य के लिए बहुत
ही गुणकारी है I इस त्यौहार का
वैज्ञानिक महत्व भी है. इस मौके पर चने और जौ की सत्तू खाने की परंपरा है, क्योंकि भीषण गर्मी की शुरुवात इसी महीने से
होती है, और इस मौसम में लोगों का उदर व्याधि विशेषकर वायु पित्त होने की संभावना
रहती हैI वैज्ञानिक दृष्टि से जौ एवं चना को शीतल एवं
वायुरोधक माना गया हैI इसलिए बैशाख मास के प्रथम दिन से ही इसका सेवन करते हैं।
मिथिला में अलग-अलग रूपों में प्रकृति की पूजा की जाती है़,जुड़-शीतल भी मिथिला की
संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है़ जो विलुप्त होने के कगार पर है़ गाँव में
इसकी झलक मिल भी जाती है, परंतु शहरों में जुड़ शीतल का पर्व
विलुप्त प्राय हो चुका है़ गाँव से सम्बन्ध रखने वाले घरों में ही इस पर्व को
विधिवत मनाया जाता है। जुड़ शीतल पर्व मनाने के पीछे इसकी उपयोगिता और सार्थकता
है़। दो दिवसीय इस पर्व के पहले दिन सतुआइन और दूसरे दिन धुरखेल(कीचड़ और मिट्टी से
खेलना) होता है़ सतुआइन के दिन सत्तू और बेसन से बने व्यंजनों को खाने कि परंपरा
है़ गरमी के मौसम में सत्तू और बेसन से बने व्यंजन के खराब होने की आशंका कम होती
है़ I इसलिए सतुआइन के दिन बना खाना ही
लोग अगले दिन खाते हैं, इस दिन अगले सुबह घर के बड़े छोटे के सिर पर पानी डालते
हैं, माना जाता है कि इससे पूरे गरमी के
मौसम में सिर ठंडा रहेगा़ पेड़ - पौधे की जड़ों में भी पानी डालने की परंपरा है.
वही धुरखेल के दिन जहां पानी जमा होता है, परंपरानुसार इन स्थानों की सफाई के
दौरान विनोदपूर्ण क्रिया की जाती है़ I मिथिला की
प्रकृतिपूजक संस्कृति का अद्भुत पर्व है जुड़-शीतल। ग्लोवल वार्मिंग के इस दौर मे
इस पर्व की उपयोगिता और सार्थकता बढ़ गई है। हम अर्थ आवर के नाम पर उन जगहों की
बत्ती भी बंद कर देते हैं, जहां
बिजली कभी-कभार आती है। क्या हमने कभी रसोई से निकलनेवाली ऊर्जा पर गौर किया है।
क्या हमने कभी रसोई को आराम देने की कोशिश की है। नहीं... लेकिन मिथिला में एक
वर्षों पुरनी परंपरा हमें ऐसा करने की प्रेरणा देती है। आज बहुत लोग इस पर्व के
संबंध में नहीं जानते, मिथिला
में भी यह पर्व सिमटता जा रहा है। अखबार और पत्रिका में भी इस पर्व के संबंध में
कोई जानकारी नहीं है। उनकी भी मजबूरी है। न कोई बड़ा नेता इस पर्व को मनाता है और
न ही कोई कलाकार या खिलाड़ी। ऐसे में इस पर्व के बारे में कहीं न जगह है और न ही
कहीं समय। लेकिन इस पर्व की रोचकता और
वैज्ञानिकता इसे मरने से बचा रखी है। अगर इस पर्व को छठ के समान प्रचारित किया जाए, तो इस
अद्भूत पर्व पर पूरा विश्व फिदा हो जाएगा। मूलरूप से यह पर्व सूचिता अर्थात
साफ-सफाई से संबंध रखता है। दो दिवसीय इस पर्व का पहला दिन सतुआइन और दूसरा दिन
धुरखेल कहा जाता है। इस मौसम में सत्तू का भी अपना विशेष महत्व है । आम के पेड़ पर
लगने वाला मंजर से टिकोला बनता है फिर उसी टिकोला से आम । इसी टिकोला और सत्तू का
पहला भोग भगवान को चढ़ाने की सदियों पुरानी परंपरा है ।
कल जुड़शीतल पर्व है यानि अगले दिन लोग कीचड़
मिट्टी से भी खेलने की परंपरा है जैसे होली में रंगों से खेलते है । कल के दिन
सुबह सुबह घर के बड़े बुजुर्ग परिवार के अन्य सदस्यों के ऊपर जल/पानी का हल्का
छींटा मारते हैं । भगवान पर चढ़ा हुआ जल से उच्छरँगा करने को शुद्धता और आशीर्वाद
माना जाता है । हलांकि कीचड़ कादो से खेलने
की यह परंपरा विलुप्त होता जा रहा है । बहुत सीमित स्तर पर सिर्फ गाँव देहात में
बचा रह गया है ।गर्मी का मौसम आ चुका है । आम फल का सीज़न शुरू हो रहा है ।
एक जमाना था जब जुड़ शीतल नाम से प्रसिद्ध मिथिला
के ख्याति प्राप्त पर्व धार्मिक अनुष्ठान के साथ साथ कई को समेटने में सक्षम था
परंतु आज यह पर्व खुद अपनी अस्तित्व को भी सहेजने में असक्षम प्रतीत होता जा रहा
है. कई कारण से यहां के लोग इस पर्व को अन्य परंपराओं की तरह भुलते जा रहे हैं।
पहले जहां मिथिला के गांवों में जुड़ शीतल मनाने की कवायद 10-15 दिन पूर्व से ही
आरंभ हो जाती थी।
खासकर नौजवान एवं बच्चे बांस की हस्तनिर्मित
पिचकारी बनाने व उस पिचकारी को लेकर तालाबों में खेलने की तैयारी में जुट जाते थे।
गांव के नौजवान एवं बच्चे दो टोली में बंट कर तालाबों के पानी में पिचकारी से एक
दूसरे के ऊपर पानी उड़ेलने का खेल खेलते थे तो बड़े बुजुर्ग अपने अपने घरों के
आसपास की कीचड़ की सफाई व तालाबों एवं कुआं की उड़ाही का कार्य भी खेल- खेल में
संपादित करते थे। कीचड़ एवं गोबर एक दूसरे पर फेंकने की प्रथा जुड़ शीतल वर्षो से
चलती आयी है। इस खेल में गांवों की महिलाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी। यह खेल
सुबह के पहले पहर में खेला जाता था। माना जाता है कि इसका प्राकृतिक चिकित्सा के
दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण माना जाता है। जुड़ शीतल पर्व के दिन अहले सुबह घर की
श्रेष्ठ महिला द्वारा सभी सदस्यों के माथे को पानी से शिक्त किया जाता है. जिसे
जुड़ाया जाना कहा जाता है। कहा जाता है कि परिवार के बड़ों के आशीर्वाद से लोग
पूरे साल खुशहाली की जिंदगी जीते हैं। विभिन्न ग्रंथों में इसकी चर्चा है. वहीं इस
परंपरा को निभाये जाने के बाद हर कोई तमाम पेड़ पौधे की सिंचाई में जुट जाते हैं।
माना जाता है कि गरमी की बढ़ती तपिश से बचाने के
लिए हर कोई संकल्पित है। फिर लोग नहा धोकर मिथिला की अति विशिष्ट व्यंजन कढ़ी और
बड़ी के साथ चावल को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे। इसके उपरांत दो बजते बजते लोग
झुंड में लाठी, भाला, बरछी, फरसा आदि
से लैश होकर वन में शिकार खेलने निकल जाते थे। शिकार में शाही, खरहा सहित
अन्य खाद्य पशु पक्षियों की शिकार की जाती थी। यदि शिकार नहीं मिला या लोग शिकार
करने में असफल रहे तो अशुभ माना जाता था. कहीं कहीं इस विशेष पर्व की विशिष्टता को
भुनाने के उद्देश्य से इस दिन दंगल एवं कुश्ती की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती
थी।शाम होते ही लोग भांग एवं चीनी की शरबत पीकर मदमस्त हो जाते थे। इसके बाद
गांवों में लोग भजन कीर्तन का आयोजन करते थे। परंतु अफसोस की आज कल के युवक इसे
महज एक इतिहास की कहानी ही समझते हैं क्योंकि आज जुड़ शीतल पर्व की लोकप्रियता
पूर्णत: धूमिल हो गयी है। या यूं कहें कि युवा वर्गो में इस पर्व को लेकर उत्साह
देखा ही नहीं जाता है।
इस प्रकार मनाये जूड-शीतल
14 को सत्तू और बेसन का पकवान बनाये जिसे 15 को भी खायें 15 को दिन में रसोई की सफाई करें, चूल्हे न जलाये 15 को सूर्योदय से पूर्व बच्चों के सिर पर पानी डाले 15 को कम से कम एक पेड में पानी डाले 15 को पानी संचयवाले स्थान की सामूहिक सफाई करे15 को तुलसी की रक्षा के लिए उसके ऊपर जलपात्र बांधे15 को अन्न दान करें, जल पात्र भेंट करें
14 को सत्तू और बेसन का पकवान बनाये जिसे 15 को भी खायें 15 को दिन में रसोई की सफाई करें, चूल्हे न जलाये 15 को सूर्योदय से पूर्व बच्चों के सिर पर पानी डाले 15 को कम से कम एक पेड में पानी डाले 15 को पानी संचयवाले स्थान की सामूहिक सफाई करे15 को तुलसी की रक्षा के लिए उसके ऊपर जलपात्र बांधे15 को अन्न दान करें, जल पात्र भेंट करें
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