Saturday 18 November 2017

कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए..

आज हर मां-बाप शिक्षा को स्तरहीन बना रहे है, कुछ ही है जो बच्चों को रूचिनुसार शिक्षा दिला पाने में सफल हो पाते है I  अधिकतर माँ-बाप अपनी बुद्धि को ही आधार मान-कर बच्चों को अपने विवेक के अनुसार विषय दिलाकर उस पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित करने का दबाब बनाते है I आज समाज में प्रतिष्ठित बनने की होड़ मची होने के कारण कोई भी अपने बच्चो को दबाव-मुक्त शिक्षा नही दे पा रहे है, और उसका परिणाम ???? बस छात्र भटकाव की ओर अग्रसर हो जाता है I दबाव में रहने वाला हर विद्यार्थी जैसे-तैसे डिग्री पास कर अपने योग्यतानुसार सही क्षेत्र में कार्य ना मिलने के कारण, वह तय नहीं कर पाता की उसका महत्त्व डिग्री के उपरांत परिवार एवं समाज में कैसे मिले?? दूसरी तरफ उम्र बढ़ते रहने के कारण उसे जो भी क्षेत्र मिलता है उसमें अपनी आजीविका शुरू कर अपने सही रूप को भूलकर बनावटी सामाजिक परिवेश को अपनाता है | आज ९०% छात्रों ने अपना जीवन इसी तरह किसी न किसी अनचाहे क्षेत्र में सिर्फ जीविका के आधार पर चुना है I ९० से १००% अंक लाने वाले छात्र भी अपने अनुसार जीवन नही बना पाते है, तथा उनका आई.क्यू बढ़िया होने के बाबजूद भी वो अपने शिक्षा को वास्तविक स्वरुप नही दे पाते है I अतः अब हमे छात्रों के मानसिक क्षमता पर आधारित शिक्षा को ही महत्त्व देना चाहिए I
जानवरों की तरह बच्चों के पीछे पड़ने से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है| इसलिए शिक्षा का स्वरुप बच्चो के दिमागी क्षमाताओ के अनुसार होना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपनी गतिविधियों को अपने सही दिशा की ओर अधिक से अधिक बेहतर बनाने की कोशिश कर सकें| शिक्षा प्राप्त करने पर सुविधा प्राप्त होती है तथा में प्रसन्नचित्त होने के कारण जो भी शिक्षा ग्रहण करता है, वह उसके भावी जीवन को प्रसन्नचित्त रखकर जीने का अधिकार देती है| इस तरह विद्यार्थी में किसी प्रकार का तनाव नहीं रहता तथा छात्र एवं पालको के मध्य सामंजस्य होने के कारण शिक्षा का भावी रूप दिखाई देने लगता है I
मित्रो शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा, नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज और स्वर्णिम राष्ट्र बनाने में मदद करता है । यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते हैं । शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते हैं, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षा हमें संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है । आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमें परिवर्तन की गुंन्जा‌इश है, आज हमें मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का को‌ई मतलब नहीं है ।
कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए। यदि आई.ए.एस. बनना है तो अपको किस रूचि के विषय को अपना कर आसानी से कामयाबी हासिल की जा सकती है, इसका चयन भी सर्वप्रथम अत्यावश्यक है। अब और कंफ्यूज रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे 9871949259 से, हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर हम आपको करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।
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अतः आइये हम सब साथ मिलकर संकल्प ले की आज के बाद हम अपने सम्पर्क के हर बच्चे को उसके मानसिक क्षमता के आधार पर ही अपने शिक्षा क्षेत्र के चुनाव करने  का बहुमूल्य सुझाव देंगे I



Sunday 13 August 2017

शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान आवश्यक

दुनिया का हर विकसित राष्ट्र या यु कहे समझदार देश अपने कुल जीडीपी का लगभग २-१०% हिस्सा शिक्षा व्यवस्था पर खर्च करता है I दुर्भाग्यवश हमारा देश ऐसे भ्रष्ट व्यवस्था के चपेट में है जो शिक्षा व्यवस्था को पूरा पूरा बर्बाद कर दिया है I  ऐसे में हमारे देश में हर वर्ष लाखो प्रतिभाशाली बच्चे  इस भ्रष्ट तन्त्र को झेलते झेलते आत्महत्या कर लेते है और जो बचते है वो अपना लक्ष्य बदलकर कुछ और करने लगते है, और ये पुरे देश का नुकसान है क्योंकि उस देश को चलाने वाला सही व्यक्ति सही जगह नही पहुँच पा रहा है I ऐसे में  भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए शिक्षा क्षेएत्र में अनुसंधान कार्य की आवश्यकता है। अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण और सविचार प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य ज्ञान को बढ़ाना और परिमार्जित करउपयोगी बनाना है। मानव ज्ञान के विकास के लिए अनुसंधान अत्यावश्यक है और तभी जीवन का विकास संभव है। अनुंधान एक उद्देश्यपूर्ण बौद्धिक क्रिया है, इसकी प्रक्रिया वैज्ञानिक होती है। 

शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यवहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन अपने निर्णय और क्रियाओं मे निर्देशन, सुधार और मूल्यांकन करते है। शिक्षा के क्षेत्र में समस्यायें बहुत है। क्रियात्मक अनुसंधान कक्षा कक्ष की विभिन्न स्थितियों की समस्याओं का हल खोजने, निदानात्मक मूल्यांकन और उपचारात्मक उपाय करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण, उपयोगी और सामयिक सिद्ध होता है। निःसंदेह शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का लक्ष्य नवीन शैक्षिक ज्ञान की खोज है जो उन समस्याओं को हल करने हेतु अनुसंधान शिक्षा के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं के निदान एवं उपचार में पर्याप्त सीमा तक उपयुक्त एवं कारगर सिद्ध होता है। क्रियात्मक अनुसंधानों का अभिप्रयास उन अनुसंधानों से है जिनका प्रमुख उद्देश्य शिक्षण संस्थानों की व्यावहारिक समस्याओं का हल खोजना है। शिक्षण के क्षेत्र में अब तक प्रायः मौलिक अनुसंधान एवं व्यावहारिक अनुसंधान होते आए हैं। इन दोनों प्रकार के अनुसंधानों में अनुसंधानकर्ता के लिए विद्यालय के जीवन से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होना आवश्यक नहीं है। इस समस्या को हल करने के लिए शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान का विकास हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का विचार सबसे पहले अमेरिका के कुछ शिक्षाशास्त्रियों द्वारा आरंभ किया गया था। इसमें प्रमुख रूप से कोलियर, लुइन, हेरिकन और स्टोफेन कोरे शामिल थे। स्टोफेन कोरे के मुताबिक क्रियात्मक अनुसंधान का अभिप्राय उस प्रतिक्रिया से है जिसके द्वारा अभ्यासकर्ता अपने निर्णयों तथा प्रतिक्रियाओं का पथ-निर्देशन एवं मूल्यांकन करने के लिए अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के प्रयत्न करते हैं। किसी भी व्यवस्था को भली प्रकार संचालन के लिए उसके सदस्य ही उत्तरदायी होते है। उनके समक्ष समस्याएं आती है, उसकी गहनता को कार्यकर्ता ही भली प्रकार समझ सकता है। अतः कार्यकर्ता को कार्यप्रणाली की समस्या के चयन करने तथा उसके समाधान ढूंढने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी वह अपने कार्य कौशल का विकास कर सकता है। कार्यकर्ता द्वारा स्वयं की कार्यप्रणाली की समस्या का चयन करने, उसका वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने एवं समाधान ढूंढकर वर्तमान क्रिया में सुधार करने की प्रक्रिया को क्रियात्मक अनुसंधान कहते है।

क्रियात्मक अनुसंधान इस प्रकार अनुसंधान की नवीनतम शाखाओं में से एक है। संक्षेप में कह सकते हैं, क्रियात्मक अनुसंधान का अभिप्राय विद्यालय में संपादित की गई उस क्रिया है से जिसके द्वारा विद्यालय की कार्य-प्रणाली में सुधार, संशोधन एवं प्रगति के लिए विद्यालय के ही अभ्यासकर्ता जैसे-शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक तथा निरीक्षक विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करते हैं। 

क्रियात्मक अनुसंधान में विद्यालय की समस्याओं का विधिपूर्वक अध्ययन होता है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान में संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान के उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही स्वयं शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक होते हैं।  वीवी कामत ने अपने एक लेख में (कैन ए टीचर डू रिसर्च टीचिंग, 1975) भारत में अनुसंधान के कुछ क्षेत्रों का उल्लेख किया, जो इस प्रकार है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का शब्द भंडार, भारत में पब्लिक स्कूल, भाषा सीखने में भूलें, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की ऐच्छिक क्रियाएं। विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की लंबाई, भार तथा अन्य शारीरिक लक्षण, भूगोल एवं इतिहास की अध्यापन पद्धतियां शामिल हैं। बालकों एवं बालिकाओं की अध्ययन अभिरूचियां, कुशाग्र बुद्धि बालकों की शिक्षा, मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा भी शामिल करने पर जोर था। भारतीय शिक्षाशास्त्रियों का शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान, माध्यमिक विद्यालयों में विभिन्न आयु वर्ग के छात्रों एवं छात्रों की मन पसंद क्रियाएं (हाबीज) पर भी जोर दिया गया था। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की शैक्षिक योग्यताएं, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की उपलब्धियों में अंतर, शिशु विद्यालयों में पढ़े हुए तथा न पढ़े हुए बच्चों का तुलनात्मक अध्ययन की बात कही गई थी। इन सूचियों पर गौर करने से इनमें कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो क्रियात्मक अनुसंधान के अंतर्गत आती है। उन पर अनुसंधान होने से शिक्षा की अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान संभव होगा और वे अनुसंधान राष्ट्र के विकास में सहायक होंगे। शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान की समस्याओं का स्रोत स्वयं स्कूल होता है। स्कूल की कार्य प्रणाली में प्रत्येक समस्या का उद्गम खोजा जा सकता है। समस्या का उचित चयन करने के बाद उसके स्वरूप का विश्लेषण जरूरी है। इसका अभिप्राय समस्या को निश्चित रूप से स्थापित करना है। ऐसा करना अनुसंधान की सफलता के लिए आवश्यक चरण है। समस्या को परिभाषित करने के बाद उसका मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। इस मूल्यांकन से अनुसंधानकर्ता को समस्या के अपेक्षित परिणाम का ज्ञान हो जाता है। शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, प्रबंधकों तथा निरीक्षकों को क्रियात्मक अनुसंधान द्वारा कार्य करते हुए सीखने का अवसर मिलता है, जो ज्ञान कार्य करते हुए अर्जित किया जाता है, वह अधिक स्थायी तथा व्यावहारिक होता है।

भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अनुसंधान कार्य की जरूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में इसकी अधिक आवश्यकता है, क्योंकि अन्य क्षेत्रों में होने वाली उन्नति क्षैक्षिक क्षेत्र में उन्नति पर अवलंबित रहती है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा में कुछ नवीन और विशिष्ट अनुसंधानों किए जाने आवश्यक है। इन अनुसंधानों में क्रियात्मक अनुसंधान को प्रमुख स्थान देना होगा, क्योंकि इस प्रकार के अनुसंधानों का स्कूलों की गतिविधियों तथा कार्य करने वाले व्यक्तियों से प्रत्यक्ष संबंध होता है। हमारे स्कूल और शिक्षा तब तक परंपरागत लीक पर ही कायम रहेंगे जब तक शिक्षक, शैक्षिक प्रशास, अभिभावक और खुद छात्र इसका मूल्यांकन नहीं करेंगे। शिक्षा में यदि कोई विकास की दिशा दिखाई दे रही है शिक्षित व्यक्ति विद्यालय से बाहर आकर समाज एवं कार्यक्षेत्र में अपने को स्थापित नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति के लिए शिक्षा को जवाबदेह माना जाता है, इसलिए इसमें सुधार होना आवश्यक है। इस लिहाज से सभी के सहयोग से क्रियात्मक अनुसंधान किया जाना आवश्यक है। खुद छात्र भी क्रियात्मक अनुसंधान से लाभांवित होंगे। साथ ही वे इसमें सहयोग और अपनी शैक्षिक क्षमता तथा योग्यता विकसित करने के लिए प्रेरित होंगे।

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Sunday 30 July 2017

DMIT के फायदे ....आप भी जानिये

आज सक्सेस सभी चाहते हैं, लेकिन यह सबको मिलती कहां है? और मिले भी तो कैसे ?? जब आप खुद उलटी दिशा में चल रहे है I हम बस किसी तरह से सफल होना चाहते है , और हमारी सफलता की परिभाषा है उच्च शिक्षा के बाद आच्छी सी नौकरी और मोटी सैलरी... कई बार तो यह अच्छी एजुकेशन और पर्याप्त मेहनत के बाद भी नहीं मिलती। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि लोग अपने लिए गलत फील्ड डिसाइड कर लेते हैं। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तब तक काफी देर हो जाती है और वे अपने कलीग्स से करियर की रेस में पीछे हो जाते हैं। इस सिचुएशन से बचने के लिए अपना गोल डिसाइड करने से लेकर सक्सेस मिलने तक हर कदम पर अपनी इंटेलिजेंस को यूज करें। अगर इन पांच प्वॉइंट्स पर फोकस करेंगे, तो सक्सेस आसानी से मिल सकती है
#Decide_your_Goal
सक्सेसफुल पर्सनैलिटीज की बात करें, तो उन्होंने पहले अपना गोल डिसाइड किया और फिर उस दिशा में काम शुरू किया। आप भी इस फार्मूले को अपना सकते हैं। अपना गोल, अपनी इन्बोर्न स्ट्रैंथ, इंट्रेस्ट और प्रॉयरिटी के बेस पर तय करें। हम यह काम कर सकते हैं? हमारी रुचि इसमें है या नहीं? हमारी प्रॉयरिटी में इसका क्रम क्या है? इसकी जानकारी के लिए हम से संपर्क करे 09871949259 पर हम आपको आपकी जन्मजात क्षमता और प्रतिभा के आधार पर आपको अपने जीवन के लक्ष्य और उसके आधार पर ही अपना टारगेट डिसाइड करने में मदद करेंगे I
#Decide_your_work_strategy
गोल डिसाइड करने के बाद सेकंड स्टेप में उसे हासिल करने के लिए वर्क स्ट्रैटेजी बनानी है। इसी वर्क स्टै्रटेजी के बेस पर सक्सेस तक पहुंचना है। स्ट्रैटेजी बनाते समय अपनी कैपेसिटी को ज्यादा या कम नहींआंकना चाहिए। यह रणनीति रियलिटी पर निर्धारित होगी, तभी अच्छा रिजल्ट मिलेगा। वर्क स्ट्रैटेजी बनाने में आप किसी एक्सपर्ट या सीनियर की हेल्प ले सकें, तो रिजल्ट और भी अच्छा मिल सकता है। ध्यान रखें कि वर्क स्ट्रैटेजी, आपके वर्क शिड्यूल से मैच करे और कहीं से भी वह आपकी वर्क कैपेसिटी से ओवर न हो। इस प्वॉइंट पर हम जितनी ईमानदारी बरतेंगे, सफलता की मंजिल उतनी ही करीब आती जाएगी।
टारगेट डिसाइड करने और वर्क स्ट्रैटेजी बनाने के बाद अब अपनी उन कमियों को दूर करने की कोशिश करें, जो सक्सेस में बाधा बन सकती हैं। समझदारी से काम लेते हुए अपने वीक प्वॉइंट्स पहचानें। फ्रेंड्स, गार्जियन या टीचर की मदद लें, जिनसे आपको अपनी कमियां जानने में मदद मिलेगी। अपने आप से क्वैश्चन करें कि क्या ये कमियां हमारी सक्सेस में बाधा बन सकती हैं? अगर आंसर हां हो, तो स्ट्रैटेजी में थोडा बदलाव करते हुए पहली प्रॉयरिटी इन वीक प्वॉइन्ट्स को दूर करने की बनाएं।
स्टेप-बाय-स्टेप स्ट्रैटेजी डेवलप करने के बाद अब मंजिल की तरफ कदम रखें। फाइनल गोल के लिए हम जो तैयारी कर रहे हैं, क्या वह सही दिशा में चल भी रही है या नहीं? यह भी जज करना जरूरी है। अगर हमें यही नहीं पता होगा, तो मुमकिन है कि आखिरी पलों में हमारी रफ्तार कम हो जाए। इससे बचने के लिए एक निश्चित समय के बाद अपनी तैयारी को खुद या किसी सीनियर से टेस्ट कराएं। इससे पता चल जाएगा कि फाइनल स्टेज तक पहुंचने के लिए कितना एफर्ट लगाए जाने की जरूरत है।
#Analyse_your_Mistakes
आप अपना वर्क जज करना शुरू करेंगे, तो बहुत सी गलतियां आपके सामने आने लगेंगी। इन मिस्टेक्स को नजरअंदाज न करें। गलतियों को इग्नोर करना सबसे बडी मिस्टेक है। मिस्टेक्स क्यों हो रही हैं, इस पर ध्यान दें और पूरे प्रिपरेशन के साथ इन्हें दूर करें।

Monday 17 July 2017

हमारे बच्चों में अपने समाज एवं राष्ट्र तथा धर्म के प्रति .......



हमारे भारतवर्ष में हम यदि बच्चों का अवलोकन करें तो सबसे पहले ये ध्यान में आता है कि हमारे बच्चों में अपने समाज एवं राष्ट्र तथा धर्म के प्रति अभिमान का अत्यंत अभाव है । यदि यह स्थिति ऐसी ही रहती है तो राष्ट्र का विनाश होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा । अत: हमें बच्चों में राष्ट्र के प्रति स्वभिमान निर्माण करने हेतु प्रयास करने ही होंगे । राष्ट्र के नागरिकों की समरूपता तथा संगठन से राष्ट्र का अखंडत्व बना रहता है । आज के विद्यार्थी ही कल के भारत के भावी नागरिक होते हैं। इसलिए विद्यार्थिंयों में बचपन से ही प्रखर राष्ट्राभिमान निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा बडे होकर समाजके लिए अर्थात राष्ट्रके लिए त्याग करने की वृत्ति उनमें निर्माण नहीं हो सकती। वस्तुतः इतिहास विषय पढकर बच्चों में राष्ट्राभिमान निर्माण होना चाहिए था; परंतु हमारी शिक्षा पद्धति अंकों पर आधारित है । परीक्षाओं का मूल्य मापन अंकों के आधार पर किया जाता है । इसलिए बच्चों का ध्यान अंक वृद्धी की ओर ही होता है । वर्तमान में बच्चे अन्य विषयों के समान `इतिहास’ विषय केवल अंकों के लिए ही सीखते हैं, उदा. भगत सिंह विषय दस अंकोंके लिए । हमें बच्चों का इसके पीछे जो दृष्टिकोण है उसे ही परिवर्तित करना होगा । इतिहास अंकों के लिए न पढकर उससे उनमें राष्ट्रप्रेम निर्माण हो, इस दृष्टिसे उन्हें पढाना होगा एवं यही दृष्टिकोण पालक तथा शिक्षकों को बच्चोंको देना होगा । यदि भावी पीढी राष्ट्रप्रेमी नहीं होगी, तो राष्ट्रका अर्थात ही हमारा विनाश अटल है । आज हम अपने बच्चो को चॉइस नही चांस के आधार पर पढाई करने के लिए दबाव डालते है , जबकि हमें उनके जन्मजात बुद्धिमता व क्षमता के आधार पर शिक्षा देनी चाहिए । आज जापान, अमेरिका, कनाडा जैसे देश अपने बच्चो को उनके प्रतिभा के अनुसार पढाई करने को प्रोत्साहित करते है, वही हमारे यहाँ पडोसी के बच्चे की देखा-देखि अपनों बच्चो का विषय चयन करते है। D.M.I.T की मदद से आप अपने बच्चे की जन्मजात प्रतिभाएं, कैरियर चयन और मस्तिष्क के विकास के कई पहलूओं के बारे में जान सकते हैं।
क्या आपने कभी स्वयं से यह प्रश्न पूछा है।;क्यों?“
एक जैसी उम्र।

एक ही क्लास।

वही टीचर।

वही किताबें।

वही पढाने का तरीका।

और परिणाम अलग-अलग।

फिर क्यों

कुछ बहुत अच्छे।

कुछ मध्यम।

और कुछ बहुत खराब।

विद्यार्थी।

हमारे पास आपके इन सब क्यों का जवाब है।

किसी को प्रतिभावान बनाया नहीं जा सकता, लेकिन प्रतिभाओं को किसी भी इंसान के अंदर से खोज कर निकाला जा सकता है।

हर कोई प्रतिभाशाली है, जब वह सही स्थिति (दिशा) में हैं।

सभी बच्चे पैदायशी प्रतिभाशाली होते हैं।।

प्रतिभा की परिभाषा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग प्रकार से होती है। और फिर दुविधा का सामना होता है ………

अब आप भी अपने और अपने बच्चे का जन्मजात बुद्धिमता और प्रतिभा जान सकते है वो भी सिर्फ १ घंटे में अधिक जानकारी के लिए कॉल करे 9871949259


Sunday 9 July 2017

हमारा अनुभव साक्षी है की राष्ट्रिय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित...

भारतीय परम्परा के अनुसार ईश्वर उपासना में सर्वप्रथम गुरू पूजन किया जाता है । हमारे संस्कृति में हमेशा से ही गुरु जी का एक विशिष्ट स्थान रहा है, हम जब अपने स्कूल जाते थे  तो सर्वप्रथम वहां ऊपस्थित  सभी गुरु जी का चरण स्पर्श करते थे, गुरु  भी  पुरे  निष्ठा से  हमें  आशीर्वचन देते  थे , परन्तु  दुर्भाग्यवश अब आधुनिकता के भेड चाल हम पाश्चात्य शिक्षण पद्धति को अपना चुके है और उसका  नतीजा  ये है की अब हमारे बच्चे  अपने माता पिता का अनादर करने लगे है तो भला हम किसी और के बच्चे से आदर का भाव कैसे उम्मीद कर सकते है । अतः अब यह नितांत आवश्यक है की हम अपने बच्चो को अपने अतीत से जागरूक करवाए, उन्हें बताये की वेद वंदना के साथ साथ राष्ट्रवंदना का स्वर भी दिशाओ में गूंजना आवश्यक है । 
शिक्षक और समाज गौरव्भुषित तब होगा जब यह राष्ट्र गौरवशाली होगा, और यह राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब यह राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों व परम्पराओ को निर्वाह करने में सफल व सक्षम होगा, यह राष्ट्र सफल व सक्षम तब होगा जब शिक्षक अपने उतरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा, और शिक्षक सफल तब कहा जायेगा जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रिय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो, यदि व्यक्ति राष्ट्र भाव से शून्य है, राष्ट्र भाव से हीन है, और अपने राष्ट्रीयता के प्रति सजग नही है तो यह शिक्षक की असफलता है  हमारा अनुभव साक्षी है की राष्ट्रिय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है, हमारा अनुभव है की हम शस्त्र से पहले हम शाश्त्र के अभाव में पराजित हुवे है मित्रो परमात्मा का साक्षात्कार तो इतना सरल नही है लेकिन वही परमात्मा इस संसार में साकार रूप में आपकी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में सहायता करता है। गुरूदेव के मार्गदर्शन से ही साधक ईश्वर को प्राप्त करता है। बिना गुरू के ईश्वर को पाना इतना सरल नही है। यदि ईश्वर को पाना इतना सरल हो जाये तो ईश्वर का महत्व ही इस संसार से समाप्त हो जायेगा। यदि ईश्वर की अनुभूति शीघ्र हो जाये तो साधक को इस बात का अंहकार हो जाता है एवं उसकी आध्यात्मिक प्रगति रूक जाती है, इसीलिए ईश्वर ही स्वप्न व ध्यान में संकेत द्वारा गुरू रूप में दर्शन देकर मार्ग प्रदर्शन करता है। इष्ट ही गुुरू रूप में दर्शन देता है। गुरू ईश्वर की महिमा का वर्णन करता है एवं इष्ट ही गुरू रूप में दर्शन देकर गुरू की महिमा बढ़ाता है । आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरुपूजा का विधान है। वैसे तो दुनिया में कई विद्वान हुए हैं परंतु चारों वेदों के प्रथम व्याख्या कर्ता व्यास ऋषि थे, जिनकी आज के दिन पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। अतः वे हमारे आदिगुरु हुए, इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करके उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणा देते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि महात्माओं का श्राप भी मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यदि राजा परीक्षित को ऋषि का श्राप नहीं होता तो उनकी संसार के प्रति जो आसक्ति थी वह दूर नहीं होती। आसक्ति होने के कारण उन्हें वैराग्य नहीं होता और वैराग्य के बिना श्रीमद्भागवत के श्रवण का अधिकार प्राप्त नहीं होता। साधु के श्राप से ही उन्हें भगवान नारायण, शुकदेव के दर्शन और उनके द्वारा देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत का श्रवण प्राप्त हुआ। इसके मूल में ही साधु का श्राप था। जब साधु का श्राप इतना मंगलकारी है तो साधु की कृपा न जाने क्या फल देने वाली होती होगी। अतः हमें गुरूपूर्णिमा के दिन अपने गुरु का स्मरण अवश्य करना चाहिए।


Tuesday 4 July 2017

क्या आप मानव जीवन में शिक्षा के मूल उद्देश्य से अवगत है ?

मानव जीवन में शिक्षा का मूल उद्देश्य अपने और अपने बच्चों को एक परिपक्व इन्सान बनाना होता है, ताकि वो कल्पनाशील, वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और देश का भावी कर्णधार बन सकें, परन्तु वर्तमान में भारतीय शिक्षा पद्धति अपने इस उद्देश्य को पूर्ण करने में असफल हैं । इसके कई सारे कारण है, सबसे पहला तो यही कि अंगूठाछाप लोग ये फैसला करते हैं कि बच्चों को क्या पढ़ना चाहिये, जो कुछ शिक्षाविद्‍ हैं वो अपने दायरे और विचारधारा‌ओं से बंधे हैं, और उनसे निकलने या कुछ नया सोचने से डरते हैं ।  ऊपर से राजनीतिज्ञों का अपना एजेन्डा है । आज जब धीरे धीरे सत्ता अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के हाथों में से फिसलती जा रही है, तो हम उनसे क्या क्या आशा रखें । सारी राजनैतिक पार्टियां अपने अपने तरीके से इतिहास को बदलने की कोशिश कर रही हैं, ये सभी कुछ इतना घटिया लग रहा है कि मेरे पास इनकी भर्त्सना करने के लिये शब्द नहीं हैं ।
पहले किसी बच्चे से पूछा जाता था कि बड़े होकर तुम क्या बनोगे तो उसका जवाब डाक्टर,इन्जीनियर,पायलट या कुछ और होता था, इसके पीछे पैसा नही होता था, बल्कि देशसेवा और समाज को आगे बढ़ाने का जज्बा होता था, आजकल बच्चा बोलता है कि मैं बड़ा होकर नेता बनना चाहता हूँ, क्योंकि इस पेशे में ज्यादा पैसा है, क्या शिक्षा सिर्फ जीवन में पैसे कमाने के लिये की जाती है? क्या हम बच्चों का मार्गदर्शन सही दिशा में कर रहे हैं । आजकल शिक्षा के मायने ही बदल गये हैं, क्योंकि हम लोगों के सोचने का तरीका ही बदल गया है, या बकौल कुछ लोगों के हम लोग कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक और स्वार्थी हो गये हैं”, हर बच्चा चाहता है कि जल्द से जल्द अपनी पढ़ा‌ई पूरी करे और किसी जगह पर फिट हो जाये, उसने क्या पढ़ा और कितना पढ़ा, उससे इसको मतलब नहीं है, या जो पढ़ा उसका जीवन मे कितना प्रयोग होगा, उससे भी इसको सारोकार नही है, उसको तो बस अपने शिक्षा के इन्वेस्टमेन्ट के रिटर्न से मतलब है, यानि कि शिक्षा और रोजगार, एक व्यापार हो गया है, पैसा लगा‌ओ और और पैसा पा‌ओ । अब बच्चों को ही क्यों दोष दें, उनके माता पिता भी तो इसी ला‌इन पर ही सोचते हैं, कि जल्दी से बच्चा पढ़-लिख ले तो पैसा कमाने की मशीन की तरह काम करे । क्या यही है शिक्षा का उद्देश्य? यदि यही है तो लानत है ऐसे उद्देश्यों पर।  हम आपके लिए लाया है एक ऐसा आधुनिक और अध्यात्मिक तरीका जिससे आप अपने और अपने बच्चो के जन्मजात प्रतिभा को समझ सके । 
मित्रो शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा, नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज और स्वर्णिम राष्ट्र बनाने में मदद करता है । यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते हैं । शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते हैं, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक हैं । शिक्षा हमें संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है । आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमें आमूल परिवर्तन की गुंन्जा‌इश है, आज हमें मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का को‌ई मतलब नहीं है ।
अधिक जानकारी और निःशुल्क करियर काउन्सलिंग के लिए संपर्क करे +91-9871949259 आप हमें अपने सवाल के साथ इमेल करे anandmohan.dmt@gmail.com c.png

Monday 3 July 2017

आखिर बच्चे गुस्सा होते क्यों है?

आज के आधुनिकता के इस दौड में छोटे बच्चों को बात-बात पर गुस्सा आता है और उन्हें डील करना बहुत मुश्किल होता है । लोग ये भूल जाते है की ऐसे बच्चों पर काबू पाने के लिए आपको धैर्य और समझ दोनों की आवश्यकता है । वास्तव में बच्चों को आपसे या किसी और से कुछ चाहिए होता है या उनकी कोई मांग होती है, तो उसके पूरा न हो पाने के कारण वे बात-बात पर खीझते रहते हैं । यदि आपका बच्चा भी इन दिनों ज्यादा गुस्सा करने लगा है, तो आपको उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, नहीं तो उसका व्यवहार अधिक चिड़चिड़ा हो जाएगा I बच्चे के गुस्सा करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, आप अपने बच्चे के साथ प्यार से बात करें और उससे इस तरह परेशान रहने का कारण जानें । उसके परेशान और गुस्सा करने की वजह जानने के बाद उस समस्या को दूर करने का प्रयास करें। अपने घर में कुछ बुनियादी नियम बना कर रखें जो बच्चों और बड़ों सभी पर लागू होते हों । बच्चा इनसे बंधा रहेगा और कम जिद करेगा। खाने के लिए डाइट प्लान बनाएं ताकि वह खाने-पीने के चीजों में ज्यादा डिमांड न रख पाए। टी.वी. देखने या बाहर जाने के भी नियम बना लें, ताकि वह उसी दौरान ही टी.वी. देखे या खेलने के लिए बाहर जाए। इसके अलावा कई और रूल सैट कर लें। मार्गदर्शन करें कई बार पेरैंट्स के पास अपने बच्चे के लिए समय नहीं होता। ऐसे में वे ज्यादा चिड़चिड़े और जिद्दी हो जाते हैं । अपने बच्चों को समय दें और उनकी हर बात को ध्यान से सुनें। बच्चों को  इग्नोर न करें , वह जो भी कहें उनकी हर बात सुनें ताकि वे आपसे हर बात शेयर कर सकें और जिद न करें।  कई बार आप उसे अनदेखा भी कर दें क्योंकि  कई बार ऐसा करना बहुत जरूरी होता है। जब बच्चा बहुत डिमांड करने लगे या आपकी बात न मानें तो थोड़े समय के लिए उसकी हरकतों और उसकी बात को इग्नोर करना सीखें। इससे बच्चे को अपनी गलती समझ में आएगी । यदि आपका बच्चा बहुत ज्यादा नखरे करता है और आपकी बात नहीं मानता है तो धैर्य रखें। ऐसे जिद्दी बच्चों को प्यार से ट्रीट करें । उन्हें हर बार नॉर्मल रह कर समझाएं धैर्य रखने से आपको बच्चे को संभालने में आराम रहेगा। अधिक जानकारी और बच्चो की काउन्सलिंग के लिए सम्पर्क करे 9871949259 या ईमेल करे anandmohan.dmt@gmail.com 




Saturday 1 July 2017

‘कैरियर’ का चुनाव चांस से नही चॉइस के आधार पर ही करे

आधुनिकता के इस दौर में भी कैरियर’ का चुनाव हम च्वायस से नहीं चांस के आधार पर ही करते हैं। हम अक्सर उनलोगों से कैरियर सम्बन्धी सलाह लेते है जो पहले से सफल है या सफलता के राह पर है । ये अच्छी बात है की आपने किसी अनुभवी से सलाह लिया पर क्या आपको ये पता है की आपने जिनसे सलाह लिया है उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर दिया है तो ऐसे में ये जरुरी नही की जो उनकी क्षमता है या जैसा उनको माहौल मिला वैसा ही आपको मिले इसलिए कैरियर में समझौता करने से बेहतर है की आप अपने आप को जाने, अपने जन्मजात क्षमता को पहचाने, और  इसके लिए कही जाने की जरुरत नही बस कॉल करे 9871949259 पर और घर बैठे करियर सम्बंधित सलाह सुझाव निःशुल्क प्राप्त करे I  आमतौर पर अधिकांश छात्र-छात्राएं स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद चाहे-अनचाहे कालेजों में ही दाखिला ले लेते हैं। आगे पढ़ाई जारी रखने की अपेक्षित इच्छा-शक्ति व लगन भले ही उनमें बिल्कुल नहीं होंलेकिन पारिवारिक दबाव और सामाजिक प्रतिष्ठा के चक्कर में पड़कर उन्हें क्षेत्र विषय में अपनी दिलचस्पी व स्थान को ताक पर रखकर बगैर सोचे-विचारे आई.ए.-बी.ए. मे अपना नाम दर्ज कराना पड़ता है। जब कैरियर की दुनिया में एक नहींअनेकानेक संभावनाएं सामने हैंतब भी अधिकांश छात्रों के माता-पिता उनके भविष्य को सजाने-संवारने का एकमात्र रास्ता उच्च शिक्षा ही मानते हैं तथा उसका केन्द्र कालेज या विश्वविद्यालय को, अपने बच्चो के भोजनकपडे़ अथवा घूमने-फिरने के शौक पर भले ही वे किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाते होंकैरियर के चुनाव में किसी भी तरह की स्वतंत्रता देना उन्हें नागवार गुजरने लगता है या वे फिर इसे उचित भी नहीं समझते।  इतना ही नहीं सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि अपने यहां के अधिकांश छात्र-छात्राओं को यह भी नहीं मालूम कि वे अपनी शैक्षणिक योग्यताअभिरूचि व क्षमता के उपयुक्त किस कोर्स का चुनाव करे। उन्हे यह भी पता नहीं कि आज इतने अधिक व्यावसायिक कोर्स उपलब्ध है कि सामान्य रूप से आई.ए.बी.ए. कक्षाओं में दाखिला लेकर उच्च शिक्षा पर बोझ बढ़ाने तथा दोबारा बेरोजगार बने रहने की जहमत मोल लेने अथवा पारिवारिक उपेक्षा व सामाजिक तिरस्कार से बचने के लिए बेहतर है कि किसी ऐसे कोर्स का चुनाव किया जाये जिसमें काफी पर्याप्त दिलचस्पी होआगे बढ़ने के तमाम अवसर हों तथा सबसे बड़ी बात यह हो कि स्वनियोजन अथवा रोजगार की शत-प्रतिशत गारंटी हो।
मगर इसके लिए सर्वाधिक जरूरी यह जानना है कि आपके लिए कौनसा कोर्स हर मायने में उपयोगी हो सकता है या फिर आपकी योग्यता व रूचियों के अनुकूल हो सकता है ताकि उसे आप लगन से पूरा कर सकें। इसके लिए आप हमसे सम्पर्क कर समस्त जानकारी हासिल कर सकते है आज भारत में उपलब्ध तमाम सामान्य व्यावसायिकगैर व्यावसायिक व तकनीकी कोर्स से सम्बन्धित जानकारियां उपलब्ध हैंजहां से आप किसी भी तरह की मदद या सुझाव मांग सकते हैं। पिछले एक दशक में शिक्षा तथा रोजगार के क्षेत्र में सैकड़ों ऐसे अवसर पैदा हुए हैं जिसके बारें में अधिकांश लोगों को आज भी कोई जानकारी नहीं। माता-पिता अपनी अपूर्ण इच्छा व आकांक्षा अपने बच्चों पर थोप देते हैं तथा बच्चे भी पर्याप्त जानकारी के अभाव में या फिर पारिवारिक अनुशासन का लिहाज करते हुए अनिच्छापूर्वक उसी कोर्स-विशेष को अपनाने के लिए मजबूर होते हैं। हालांकि यह सबसे खतरनाक स्थिति होती है और उसके नतीजे भी कालान्तर में कष्टदायक ही होते हैं। आज उच्च शिक्षा मे सिर्फ उन्ही लोगों को जाना चाहिए जिनकी दिलचस्पी वाकई अध्ययन तथा शोध मे हैअन्यथा उन्हे देश मे उपलब्ध अन्य अवसरो मे से ही अपने भविष्य की सुरक्षा की तलाश करनी चाहिए। आज स्पोर्टसमेडिसिनबॉयोटेक्लॉजीकास्मेटॉलॉजीफैशनडिजायन तथा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में सैकड़ों स्वर्णिम संभावनाएं उपलब्ध हैंफिर क्यों नहीं उनमें अपनी क्षमता व प्रतिभा आजमायी जाये। स्कूल शिक्षा समाप्त हो जाने के बाद कैरियर की चिंता व उसका चुनाव की प्रक्रिया इतनी अव्यावहारिक ;पर आज भी प्रचलन मेंद्ध है कि अधिकांश छात्र-छात्राएं आगे चलकर अपने ही चयन पर तथा अपने ही कोर्स से घृणा करने लग जाते हैं। लेकिन तब तक देर इतनी हो चुकी होती है कि सिवाय पश्चाताप व सिर धुनने के और कोई चारा भी नहीं रह जाता। दूसरी ओर जो कैरियर का सही चुनाव ;यहां सही’ से तात्पर्य योग्यताक्षमता व अभिरूचि के अनुरूप हैंद्ध करने से असफल हो जाते हैंवे भारत छोड़कर विदेशों में जाने की बात तो अपने आसपास फटकने भी नहीं देते। भारतीय शिक्षा को कोसने का काम भी उन्हीं का रह जाता है जो कैरियर के विवेकपूर्ण चुनाव में विफल रहते हैं। एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुझाव यह कि कैरियर के चुनाव का सही वक्त दसवीं कक्षा होनी चाहिए क्योंकि यह एक ऐसा समय होता है जब छात्र-छात्राओं में सर्वाधिक अनिर्णय की स्थिति होती है पर साथ ही साथ उन्हें सबसे अधिक सही सुझाव और दिशा-निर्देश की भी आवश्यकता होती है। विषयों के चुनाव का यह सबसे सही वक्त होता हैपर्याप्त सोच-विचार कर अपनी रूचि के विषय का चयन उसमें कैरियर की संभावनाओं के मद्देनजर ही करना चाहिए। ऐसा नहीं कि आर्ट्स पढ़ने की इच्छा हो और साइंस में दाखिला लेने की मजबूरीकॉमर्स में दिलचस्पी हो तथा इंजीनियरिंग कोर्स को अपनाने का दबावमेडिकल मे जाने की इच्छा होएम.बी.ए. मे दाखिला लेने की विवशता। इस तरह आधे-अधूरे मन से किये गये कैरियर के चुनाव में वांछित सफलता तो संदिग्ध रहती ही हैइच्छित नतीजे न मिलने से जीवन भर के लिए ही वह कोर्स अभिशाप बन जाता है। होना तो यह चाहिए कि आप जो भी कोर्स करने जा रहे होंउसके बारे में अथवा उसकी संभावनाओं से आपको पूर्णतया वाकिफ होना चाहिए कि आखिर आप वह कोर्स किस लिये कर रहे हैं। कोर्स का अनायास चयन नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर न तो आप उस कोर्स के प्रति सीरियस हो सकेंगे और न ही अपने प्रति समुचित न्याय कर सकेंगे। आपको उक्त कोर्स में संतुष्टि भी नहीं मिलेगीन पर्याप्त दिलचस्पी जगेगी और फिर नतीजा निराशा ही निराशा।
छात्र-छात्राओं को हताशा अथवा निराशा का शिकार होने से बचाने के लिए  सर्वप्रथम छात्र-छात्राओं से यह पता किया जाता है कि किस तरह के विषय में उनकी रूचि हैतदनुसार ही उक्त क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों से उसे वाकिफ कराया जाता है ताकि बगैर किसी दबाव के कैरियर के चयन की स्वतंत्रता में स्वविवेक के भी पर्याप्त इस्तेमाल का मौका उन्हें मिल सके। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि मां-बाप अपने बेटे के आई.ए.एस. बनने का ख्वाब देखते है और उसी अनुसार उसकी शिक्षा पर भी बल देते है पर वह एक बिजनेंसमैन बनकर रह जाता है। कैरियर के चयन मे स्वतंत्रता न देने का ही यह नतीजा है कि उहापोह का शिकार छात्र कभी-कभार न घर का रह जाता है और न घाट का।
  DMIT  द्वारा छात्र-छात्राओं की अभिरूचि जान लेने पर उन्हें स्वयं कैरियर प्लान’ बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि रूचि के किसी भी क्षेत्र विशेष में कैरियर बनाने की तमन्ना के विभिन्न रास्ते दिखा देने भर से ही छात्र-छात्राओं में उसे पूरा करने की इच्छा भी प्रबल होने लगती है। उनमें अनिर्णय जैसी स्थिति हर्गिज नहीं रहती तथा वे कैरियर विशेष के विभिन्न पहलुओं व विभिन्न रास्तों से परिचित होकर फैसला करने की स्थिति में होते हैं। अब और कंफ्यूज  रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर पर आपको  करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।  हम छात्र-छात्राओं को शिक्षा व कैरियर में उनकी अभिरूचि ही नही बल्कि उनके जन्मजात प्रतिभा व क्षमता के अनुसार यह जानकारी देते है कि वे अपने देश में उपलब्ध व्यावसायिक अवसरों से किस तरह फायदा लेकर अपना भविष्य बना सकते हैं I कैरियर के चुनाव मे उधेड़बुन की स्थिति नहीं होनी चाहिए। फैसला बिल्कुल अपने लक्ष्य को केन्द्र में लेकर होना चाहिए। यदि आई.ए.एस. बनना है तो अपको किस रूचि के विषय को अपना कर आसानी से कामयाबी हासिल की जा सकती हैइसका चयन भी सर्वप्रथम अत्यावश्यक है। अब और कंफ्यूज  रहने की जरुरत नही है आज ही संपर्क करे 9871949259 से, हम आपको आपके जन्मजात प्रतिभा के आधार पर हम आपको  करियर विकल्प देंगे जिसमें आप शीर्ष तक पहुँच सके ।
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मंदबुद्धि - क्या उपहास के पात्र है ? अथवा प्रशंसा व संवेदना के ?

हमारे समाज में मंदबुद्धि बच्चा उसे कहा जाता है जिसका बौद्धिक विकास स्तर उसकी उम्र के अन्य बच्चों की अपेक्षा कम होता है । इसकी वजह से उसका बोलचाल का तरीका व व्यवहार काफी बचकाना होता है।
किसी भी परिवार में मंदबुद्धि बच्चे का आना अभिशाप माना जाता है। उसके साथ असामान्य व्यवहार किया जाता है। और कई बार तो उसका नाम ही पगलारख दिया जाता है। यह बच्चा पास-पड़ोस व कई बार तो घर वालों के भी मजाक का पात्र बनता है।
पर क्या ! उस बच्चे की स्थिति में उसका अपना कोई हाथ है? जाहिर है कि नहीं! फिर वह अपनी स्थिति, जो कि ईश्वर की देन है, की सज़ा क्यों भुगते? और सोचा जाए तो क्या इसमें किसी का भी दोष है? कौन माँ-बाप चाहेंगे कि उनकी संतान इस स्थिति में हो? यह स्थिति किसके लिए रूचिकर या फायदेमंद होगी? इन सभी सवालों के जवाब में शायद ही किसी को कोई संशय होगा लेकिन फिर भी आमतौर पर सभी लोग इन बच्चों को हेयदृष्टि से देखते हैं और हमारे समाज में इससे संबंधित कई भ्रांतियां भी प्रचलित हैं।
इन बच्चों को देखकर साधारण तथा सबसे पहला ख्याल लोगों के मन में यही आता है कि ये सब माँ-बाप या परिवार के बुरे कर्मो का फल है । और तो और, अक्सर माँ को ही दोषी माना जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि यह स्थिति कभी भी किसी भी परिवार में आ सकती है और मेडिकल साइन्स में इसके अनेक कारण बताए गए हैं। यह समस्या गर्भावस्था, प्रसव के दौरान या शैशवकाल की किसी समस्या अथवा बीमारी की वजह से बच्चे के दिमाग पर असर होने पर उत्पन्न होती है। किन्तु यह बढ़ने वाली बीमारी नहीं है अतः यदि छोटी अवस्था से ऐसे शिशु को उचिल प्रशिक्षण व सहायक थेरेपी दी जाए तो उसका विकास अच्छा होता है तथा वह काफी हद तक आत्मनिर्भर हो सकता है। केवल गंभीर व अतिगंभीर मंदता वाले बच्चों की आत्मनिर्भरता में दिक्कत होती है परन्तु यह स्थिति मानसिक मंदता के केवल कुछ ही बच्चों में होती है । और यह भी सत्य है कि यह किसी को दोष नहीं है, खासकर माँ को तो बिल्कुल भी नहीं। बच्चों को तो इससे सबसे अधिक तकलीफ होती है क्योंकि इस बच्चे का पालन-पोषण अत्यधिक मेहनत और जिम्मेदारी का काम है जो माँ को ही करना पड़ता है । और यह प्रक्रिया सालों-साल चलती है। माँ के लिए तो इस बच्चे का पालन-पोषण तपस्या के समान है।
दूसरा विचार जो आमतौर पर लोगों के मन में आता है वह यह है कि ये बच्चे कुछ सीख नहीं सकते और ताउम्र अपने घर-परिवार पर बोझ बने रहते हैं। किन्तु असलियत में ये बच्चे काफी कुछ सीख सकते हैं। इनकी सीखने की गति धीमी होती है । हम लाये है एक ऐसा आधुनिक टेक्नोलोजी D.M.I.T जिसके मदद से बच्चो की सिखने की क्षमता ज्ञात हो जाती है, उसके बाद इनको कार्यात्मक शिक्षा दी जाती है जिससे ये दैनिक जीवन में आत्मनिर्भर हो जाते हैं तथा व्यावसायिक शिक्षा के द्वारा आर्थिक रूप से भी स्वावलंबी बन सकते हैं। जो लोग इन बच्चों के संपर्क में आए होंगे वे जानते होंगे कि ये बच्चे काम सीख लेते हैं उसे बहुत ही कायदे से करते हैं और अपने कार्य के प्रति पूरे ईमानदार होते हैं।
हमारे समाज मे अक्सर सब मानसिक मंदता और मनोवैज्ञानिक बीमारियों को एक ही समझते हैं यह बहुत बड़ी गलती है तथा मंदबुद्धि बच्चे के साथ अन्याय है क्योकि मंदबुद्धि बच्चे की कार्यक्षमता, व्यवहार व सोंच अपनी उम्र से काफी कम उम्र के सामान्य बच्चे की तरह होती है तथा उचित मार्गदर्शन से उसका विकास सीघ्र होता है। इसके विपरीत मनोवैज्ञानिक बीमारी में आदमी की सोंच व व्यवहार अप्राकृतिक होता है तथा बिना इलाज यह समस्या बढ़ती जाती है। जबकि मानसिक मंदता के लिए किसी दवा की आवश्यकता नहीं होती है।
अक्सर यह भी देखा गया है कि लोग मंदबुद्धि बच्चों से डरते हैं कि ये दूसरों को नुकसान पहुचायेंगें । इस विचार के एकदम विपरीत, ये बच्चे अक्सर बहुत ही सौम्य व प्यार करने वाले होते हैं। मारपीट तोड़फोड़ आदि व्यवहार संबंधी दोष इनमें अनुचित माहौल की वजह से उत्पन्न हो जाते हैं और सही माहौल देने पर इस तरह के व्यवहार ठीक भी हो जाते हैं। यह जरूर है कि कभी-कभी ये बच्चे अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति उचित तरीके से नहीं कर पाते हैं और हमें उनका व्यवहार अजीब लगता है किन्तु सही प्रशिक्षण से सही अभिव्यक्ति भी ये शीघ्र सीख लेते हैं।
यदि हम यह सोचें कि इन बच्चों के संपर्क में अन्य बच्चे भी गलत आदतें सीख जायेंगें तो हमारे समाज में वैसे भी अनेक बुराइयाँ हैं। जब हम उनसे बचने के लिए अपने बच्चे का उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं तो मंदबुद्धि बच्चे की गलत आदतें सीखने से भी हम उन्हें रोक सकते हैं। जरूरत सिर्फ इतनी है कि मंदबुद्धि बच्चों को हम खुले दिल से अपनाएं उन्हें अपने समाज व परिवार का ही एक हिस्सा समझें। रही बात पूजा-पाठ,ब्रत-अनुष्ठान, टोटके आदि की, तो ये सब केवल मन की शांति के लिए ही उपयोगी हैं। बच्चे की स्थिति या उसकी प्रगति में इन सबका कोई असर नहीं होते है अपितु समय ही नष्ट होना है। जिस चीज की इन्हें आवश्यकता है वह है हमारा भरपूर प्यार व प्रोत्साहन इनकी जरूरत यह है कि हम इन्हें पूरी तरह से अपनाएं ओर इनके प्रति सकारात्मक रवैया रखें।
हमारे मानव शरीर में अनेकों अंग हैं और हमेशा हर अंग सूचारू रूप से काम करता रहे यह तो संभव नहीं है। यदि किसी को गुर्दे को रोग होता है, तो हृदय रोग होता है या पेट की या फेफड़े की बीमारी होती है तो हम उसका यथोचित उपचार करवाते हैं किन्तु यदि दिमाग की कार्यक्षमता कुछ कम होती है तो उस इंसान का उपहास करते हैं, भेदभाव करते हैं। क्या यह उचित है? एक बार कलकत्ता की रानी के मंदिर की मूर्ति का हाथ टूट गयी। रानी ने रामकृष्ण परमहंस जी से पूछा कि क्या यह मूर्ति गंगा में प्रवाहित कर दी जाए। परमहंस जी ने उनसे पलट कर सवाल किया कि यदि आपके दामाद का हाथ टूट जाए तो आप क्या करेंगी? परमहंस जी का कहना था कि हमारा हर कृत्य भावनाओं से ही संचालित होता है इसलिए यदि हम इन बच्चों को अपने समाज और परिवार का हिस्सा मानकर चलें तो इनके प्रति हमारा नज़रिया स्वयं बदल जाएगा।
आज हमारा फर्ज़ यह है कि इन बच्चों को छोटी उम्र से उचित शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाए, इनकी कमजोरियों को दूर करने के लिए उचित उपाय किए जायें और इनके हुनर को बढ़ावा देने के लिए उचित अवसर दिए जाएं। बच्चे की स्थिति को समझते हुए उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें कार्य सिखाया जाए जिससे वे अपना कार्य स्वयं बेहतर ढंग से कर पाएं तथा घर समाज का उपयोगी किस्सा बन सकें।
बच्चों के अलावा और जिनको समाज की सही सोंच व सहायता की आवश्यकता है वह हैं इन बच्चों के अभिभावक! बच्चों के साथ-साथ वे भी समाज से कटते जाते हैं। अपने बच्चे की स्थिति व उसके भविष्य को स्वीकार कर पाना ही उनके लिए काफी मुश्किल हो जाता है, ऊपर से बच्चे के प्रति दूसरों की उपेक्षा व तिरस्कार भी मिलता है। इसके साथ-साथ बच्चे की परवरिश की अतिरिक्त जिम्मेदारी का दबाव अभिभावकों में कई बार अवसाद व हीन-भावना की स्थिति उत्पन्न कर देता है। कई बार वे इस स्थिति को स्वीकार करने में असमर्थ होते हैं और पलायन-वादी रवैया अपना लेते हैं। वे बच्चे की जरूरतों को अनदेखा करके अन्य चीजों में अपनी खुशियाँ ढूढ़ने लगते हैं लेकिन उनका कर्तव्य बोध उन्हें वहां भी खुश नहीं रहने देता।
इस सब का सीधा असर बच्चे पर ही पड़ता है क्योंकि जो उसके सीखने की उम्र है वो तो इन्हीं सब बातों में निकल जाती है और जितना विकास हो सकता था वो नहीं होता है। इसके अलावा समुचित प्यार व देखभाल के अभाव में बच्चे में व्यवहार संबंधी दोष भी उत्पन्न हो जाते हैं जो कि उसके विकास में बाधक होते है तथा घरवालों के लिए भी कष्टकारी होते हैं।

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हम सब को यह सोंचना है कि क्या हममें से कोई भी संपूर्ण हैं? कमियां तो सभी में होती हैं। ऐसे में इन बच्चों का तिरस्कार करना क्या उचित है? किसी ना किसी रूप में ईश्वर की उपासना हम सभी करते हैं तो फिर ईश्वर की इस रचना की उपेक्षा करना क्या न्याय-संगत है? वह बच्चा जो अपनी जरूरत और इच्छा व्यक्त करने तक में असमर्थ है और वे अभिभावक जो तन-मन धन से अपने बच्चे की सेवा में लगे रहते हैं, क्या उपहास के पात्र है अथवा प्रशंसा व संवेदना के ?
हम लोगो को उनकी जन्मजात क्षमता व प्रतिभा को उजागर कर उन्हें उनके जीवन को और बेहतर बनाने में मदद करते है अधिक  जानकारी और करियर काउन्सलिंग के लिए व्हाटसैप  करे +91-9871949259, पर या फिर इमेल करे anandmohan.dmt@gmail.com


Friday 30 June 2017

बच्चे की बुद्धि को जबरदस्ती हम नही बढ़ा  सकते है . हम केवल बच्चे के आत्मिक बल को बढा सकते है I माता पिता अपने बच्चो के लिए क्या कर सकते है .. क्या नही कर सकते है ..ये हमें पता होना चाहिए हमे बच्चो को हमेशा प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि हम जो बच्चो को बोलते है बच्चा अपने बारे में वैसा ही स्व्मान बना लेते है ... 





Thursday 29 June 2017

मानव जीवन में शिक्षा का अर्थ :-

मित्रो शिक्षा शब्द की उत्पति सभी भाषा की जननी संस्कृत भाषा के शिक्षधातु से बना है। जिसका अर्थ है सीखना या सिखाना। शिक्षाशब्द का अंग्रेजी समानार्थक शब्द “Education” (एजुकेशन) जो की लेटिन भाषा के “Educatum”(एजुकेटम) शब्द से बना है तथा “Educatum”(एजुकेटम) शब्द स्वयं लैटिन भाषा के E (ए) तथा Duco (ड्यूको) शब्दों से मिलकर बना है। E (ए) शब्द का अर्थ है अंदर सेऔर Duco (ड्यूको) शब्द का अर्थ है आगे बढ़ना। अतः “Education” का शाब्दिक अर्थ अंदर से आगे बढ़नाहै।  इसी प्रकार लेकिन लैटिन भाषा के “Educare”(एजुकेयर) तथा “Educere” (एजुशियर) शब्दों को भी “Education”(एजुकेशन) शब्द के मूल के रूप में स्वीकार किया जाता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि शिक्षाशब्द का प्रयोग व्यक्ति या बालक की आन्तरिक शक्तियों को बाहर लाने अथवा विकसित करने की क्रिया से लिया जाता है।
मित्रो दुर्भाग्यवश आज की शिक्षा सिर्फ सुचना तक सिमित रह गयी है, हर माँ बाप अपने बच्चो को सिर्फ व्यावसायिक पाठ्यक्रम ही पढ़ा रहे है जिससे बच्चे जल्दी से जल्दी नोट छापने की मशीन बन सके । दोस्तों वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था में अगर जरुरी बदलाव नही लाया गया तो वो दिन दूर नही जब आने वाली पीढ़ी अपने गौरवशाली स्वर्णिम भारत के इतिहास को भूलते हुवे अपना नैतिक उत्थान नही कर पाएंगे
शिक्षा की परिभाषायें :-
पूज्य स्वामी विवेकानंद के अनुसार, “मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है
महात्मा गांधी के अनुसार, “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक या मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क या आत्मा के
सर्वांगीण  एवं सर्वोत्तम विकास से है।
दार्शनिक फ्रावेल के अनुसार, “शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी शक्तियों का विकास करता है।
अरस्तु के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करना ही शिक्षा है।
हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार, “शिक्षा से तात्पर्य है अन्तर्निहित शक्तियों तथा बाह्य जगत के मध्य समन्वय स्थापित करना है।
पेस्टालाजी के अनुसार, “मानव की आंतरिक शक्तियों का स्वभाविक व सामंजस्यपूर्ण प्रगतिशील विकास
ही शिक्षा है।  परन्तु आप अगर आज के वर्तमान शिक्षा पद्धति को देखे तो उपरोक्त महापुरुष के कथन से दूर दूर तक कोई रिश्ता नही है, और यही कारण है की आज के युवा बेरोजगार होते जा रहे है ।  अगर हर युवा अपने जन्मजात क्षमता और प्रतिभा को जानते हुवे अपने कौशल का विकाश करे तो कोई भी युवा बेरोजगार नही रहेगा, अतः आप चाहते है की हमारे देश के युवा बेरोजगार णा रहे तो आज ही संपर्क करे और जाने अपना जन्मजात क्षमता एवं प्रतिभा , ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क करे +91-9871949259 आप हमें anandmohan.dmt@gmail.com पर अपने सवालों के साथ  इमेल भी भेज सकते है 


वर्तमान शिक्षण प्रणाली आ एकर दुष्परिणाम के जिम्मेदार के ?

अभी हालहि  मधुबनी मे मिथिला सेवी राघबेन्द्र रमण केर अनुज बारहवीं परीक्षा मे अनुतीर्ण भेलाक कारणे  आत्महत्या कय लेलन्हि! शोकाकुल परिवार के व्यथा अपने सब बुइझ सकैत छी ! मुदा अहाँ लेल त इ एकटा न्यूज़ मात्र भ सकैय कियाकि अहाँ सब सबटा दोष सरकार के दय अपन कर्तव्य के इति श्री बुइझ लैत छी !
ई घटना मात्र सरकार के शिक्षा व्यवस्था पर नै अपितु हमरा आहाँक समाजक मानसिकता पर सेहो बड्ड पैघ प्रश्न चिन्ह छैक! हम सभ अपना परिवारक  बच्चा के गुण-अवगुण, आ ओकर मष्तिष्क में अद्भुत क्षमता से अनभिग्य छि आ ओकरा अपना/समाजक हिसाब स चलाब चाहै छि बिना इ सोचने की अहाँ के बच्चा कोनो कम्पुटर नै जे अहाँ अपना पसंद के सोफ्टवेयर इंस्टाल क लेब ! देखियो अहांक बच्चा के मष्तिष्क के प्रोग्रामिंग गर्भावस्था के चारिम सप्ताह से शुरू भ गेल रहै, आ ऐना में अहाँ अपना हिसाब स प्रोग्रामिंग कर चाहब त रिजल्ट केर जिम्मेदार भी अहिं के बन परत !
कोनो भी बच्चा मंदबुद्धि नै होइत छैक, मुदा जौ कोनो विशेष क्षेत्र में ओकर रूचि नै लागल, या ओ ओही विशेष क्षेत्र में कमजोर छै त हम अहाँ आ हमर समाज ओही बच्चा के मंदबुद्धि कहिते कहिते ओकरा मंदबुद्धि बना क छोरय छि ! ऐना में कहू जे दोषी की  ओ बच्चा ? जेकर मष्तिष्क निर्माण में हमर अहांक कोनो योगदान नै , आ की हम अहाँ जे ओकरा मंदबुद्धि बनाव में अपन पूरा योगदान दैत छि ?
देखियौ परीक्षा मे भेटल प्राप्तांक सं  अहाँ बच्चा के प्रतिभा के आकलन नै करु, ओकर प्रतिभा के चिन्हु आ ओकर विकास करियो, तखने एकटा स्वस्थ समाजक निर्माण भ सकत ! अपन बच्चा पर बेसी सं बेसी नम्बर अनबाक बोझ नै थोपू, ओकरा प्रतिभा के  प्रोत्साहित करियो जाहि स ओ अपन पंसदीदा क्षेत्र में अपन करियर बना खुशहाल जीवन जी सकै !
सब बच्चा सब क्षेत्र में नीक प्रदर्शन नै क सकैय, मुदा कोनो नै कोनो क्षेत्र एहन जरुर छैक जाहि में अहांक बच्चा बहुत निक प्रदर्शन क सकैय, त आबो विलम्ब नै करू आ अपन अपन बच्चा के उज्ज्वल भविष्य हेतु ओकर प्रतिभा के पहचान करू आ ओकरा प्रोत्साहित करू ! समाज के दिखाबा लेल अपन बच्चा संग अन्याय नै करू ! बहुत रास एहन विकसित राष्ट्र छैक जाहि में बच्चा सबहक प्रतिभा के आकलन नर्सरी में भ जायत छैक,  आ ओकर प्रतिभा के आधार पर ही ओही बच्चा के करियर निर्धारण बचपने में भ जायत छैक,  मुदा एही क्षेत्र में भारत  अखन धैर बहुत पछुवायल अइछ, मुदा आब नै रहत कियाकी आब जापान स एकटा विशेष टेक्नोलॉजी जे बच्चा के जन्मजात क्षमता आ प्रतिभा के उजागर करैत सटीक करियर सुझाव दैइत  अइछ ओ अहांक शहर में सेहो आइब गेल !
विशेष जानकारी आ निःशुल्क  करियर सम्बंधित सलाह सुझाव लेल अहां अपन सवाल पठा सकैय छी, हमर इमेल अइछ  anandmohan.dmt@gmail.com , अहाँ व्हाटसैप पर सेहो अपन सवाल पठा सकै छी जाहि लेल हमर व्हाटसैप नम्बर रहल अइछ
+91-9871949259