Tuesday 24 April 2018

बच्चो को मानसिक तनाव से बचाने के लिए ये जरुर बताया जाना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है...

बच्चे को तनाव से बचाने में DMIT टेस्ट मदद करता है 
मनुष्य स्वयं में एक बेशकीमती संपदा है, एक ऐसा अमूल्य संसाधन है जिसको दुनिया के किसी भी बेशकीमती चीज से बराबरी नही कर सकते, बस जरूरत इस बात की है कि उस(मानव) अमूल्य संपदा की परवरिश सही दिशा में हो, गतिशील एवं संवेदनशील हो और साथ ही परवरिस के दौरान ख़ास सावधानी बरती जाये। व्यक्ति जन्म लेता है तो वह एक खाली डब्बा मात्र है, हम उसमे जो भरेंगे,उसी अनुसार वो व्यक्ति बेशकीमती/कबाड़ा होगा, अब हमे ये फैसला करना है की हम अपने बच्चे को बेशकीमती बनाना चाहते है या कबाड़ा?
हर इंसान का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है, जन्म से मृत्युपर्यन्त, जिन्दगी के हर मुकाम पर उसकी अपनी समस्याएं और जरूरतें होती हैं। विकास की इस पेचीदा और गतिशील प्रक्रिया में शिक्षा अपना उत्प्रेरक योगदान दे सकें, इसके लिए बहुत सावधानी से योजना बनाने और उस पर पूरी लगन के साथ अमल करने की आवश्यकता है। बच्चो को पढाई प्रारम्भ करने से पूर्व ये पता होना चाहिए की वो क्या पढ़ रहा है, और क्यों पढ़ रहा है? इस पढ़ाई का उपयोग वो जीवन के किस हिस्से में कर पायेगा I अगर आप अपने बच्चो को अच्छी नौकरी पाने के लिए मन लगाकर पढने को बोलते है, तो आप बच्चे के साथ अन्याय कर रहे है I जिस बच्चे को ये पता ही नही है की उसे किस क्षेत्र में नौकरी करनी है, तो फिर वो किस विषय में मन लगाकर पढ़े ??
अब हमारे सिलेबस में १०वी तक सभी विषये पढाई जाती है, तो ऐसे में बच्चे किस विषय पर अत्यधिक ध्यान दे ?? आगर आप कहेंगे की हर विषय पर बराबर ध्यान दे तो आपकी ये गलती आपके बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को बर्बाद कर देगा I इसलिए अगर आप एक सचेत माता-पिता है तो आज ही अपने बच्चे के उस विशिष्ट क्षेत्र की पहचान करे, जिसमे में उसे अत्यधिक ध्यान देना है I अपने बच्चे की छुपी हुई प्रतिभा को वैज्ञानिक पद्धति से उजागर करने के लिए अभी संपर्क करे 9471818604, 9711139259

Saturday 14 April 2018

मिथिला का एक ऐसा त्यौहार जो ग्लोबल वार्मिंग को कम करता है ..

आनंद
जुड़ शीतल के दौरान कीचड़ से खेलते लोग 
आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को झेल रहा  है, आधुनिक विज्ञान ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कोई स्थायी विकल्प खोजने में विफल रहा है, इसका मुख्य कारण ये है की ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ और सिर्फ प्रकृति के मदद से ही कम किया जा सकता है, और प्रकृति से मदद लेने के लिए हमे प्रकृति की मदद करनी होगी, और वो हम कर सकते है, पेड़ लगाकर, प्रदुषण कम करके, अपने आस पास साफ़ सफाई रखते हुए हम प्रकृति को हरा भरा रखने में अपना योगदान दे सकते है I पता नही आप लोगों में से कितनों को इस पर्व के बारे में मालूम है । निश्चित ही इस आधुनिक युग मे बहुतों को नही पता होगा । आइये थोड़ा डिटेल बताते है आपको । हमारे यहाँ आज  ग्लोबल वार्मिंग को कम करने वाला एक त्यौहार जुड़ शीतल(Stay Cold) मनाया जा रहा है, इसे सतुवाइन भी कहा जाता है, सतुवाइन सत्तू(जो की चने का बनता है, इसका सेवन करना सतुवाइन कहा जाता है), और स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गुणकारी है I इस त्यौहार का वैज्ञानिक महत्व भी है. इस मौके पर चने और जौ की सत्तू खाने की परंपरा है,  क्योंकि भीषण गर्मी की शुरुवात इसी महीने से होती है, और इस मौसम में लोगों का उदर व्याधि विशेषकर वायु पित्त होने की संभावना रहती हैI वैज्ञानिक दृष्टि से जौ एवं चना को शीतल एवं वायुरोधक माना गया हैI इसलिए बैशाख मास के प्रथम दिन से ही इसका सेवन करते हैं। मिथिला में अलग-अलग रूपों में प्रकृति की पूजा की जाती है़,जुड़-शीतल भी मिथिला की संस्कृति से जुड़ा एक अद्भुत पर्व है़ जो विलुप्त होने के कगार पर है़ गाँव में इसकी झलक मिल भी जाती है, परंतु शहरों में जुड़ शीतल का पर्व विलुप्त प्राय हो चुका है़ गाँव से सम्बन्ध रखने वाले घरों में ही इस पर्व को विधिवत मनाया जाता है। जुड़ शीतल पर्व मनाने के पीछे इसकी उपयोगिता और सार्थकता है़। दो दिवसीय इस पर्व के पहले दिन सतुआइन और दूसरे दिन धुरखेल(कीचड़ और मिट्टी से खेलना) होता है़ सतुआइन के दिन सत्तू और बेसन से बने व्यंजनों को खाने कि परंपरा है़ गरमी के मौसम में सत्तू और बेसन से बने व्यंजन के खराब होने की आशंका कम होती है़ I इसलिए सतुआइन के दिन बना खाना ही लोग अगले दिन खाते हैं, इस दिन अगले सुबह घर के बड़े छोटे के सिर पर पानी डालते हैं, माना जाता है कि इससे पूरे गरमी के मौसम में सिर ठंडा रहेगा़ पेड़ - पौधे की जड़ों में भी पानी डालने की परंपरा है. वही धुरखेल के दिन जहां पानी जमा होता है, परंपरानुसार इन स्थानों की सफाई के दौरान विनोदपूर्ण क्रिया की जाती है़ I मिथिला की प्रकृतिपूजक संस्कृति का अद्भुत पर्व है जुड़-शीतल। ग्लोवल वार्मिंग के इस दौर मे इस पर्व की उपयोगिता और सार्थकता बढ़ गई है। हम अर्थ आवर के नाम पर उन जगहों की बत्ती भी बंद कर देते हैं, जहां बिजली कभी-कभार आती है। क्या हमने कभी रसोई से निकलनेवाली ऊर्जा पर गौर किया है। क्या हमने कभी रसोई को आराम देने की कोशिश की है। नहीं... लेकिन मिथिला में एक वर्षों पुरनी परंपरा हमें ऐसा करने की प्रेरणा देती है। आज बहुत लोग इस पर्व के संबंध में नहीं जानते, मिथिला में भी यह पर्व सिमटता जा रहा है। अखबार और पत्रिका में भी इस पर्व के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उनकी भी मजबूरी है। न कोई बड़ा नेता इस पर्व को मनाता है और न ही कोई कलाकार या खिलाड़ी। ऐसे में इस पर्व के बारे में कहीं न जगह है और न ही कहीं समय। लेकिन इस पर्व की रोचकता और वैज्ञानिकता इसे मरने से बचा रखी है। अगर इस पर्व को छठ के समान प्रचारित किया जाए, तो इस अद्भूत पर्व पर पूरा विश्व फिदा हो जाएगा। मूलरूप से यह पर्व सूचिता अर्थात साफ-सफाई से संबंध रखता है। दो दिवसीय इस पर्व का पहला दिन सतुआइन और दूसरा दिन धुरखेल कहा जाता है। इस मौसम में सत्तू का भी अपना विशेष महत्व है । आम के पेड़ पर लगने वाला मंजर से टिकोला बनता है फिर उसी टिकोला से आम । इसी टिकोला और सत्तू का पहला भोग भगवान को चढ़ाने की सदियों पुरानी परंपरा है ।
कल जुड़शीतल पर्व है यानि अगले दिन लोग कीचड़ मिट्टी से भी खेलने की परंपरा है जैसे होली में रंगों से खेलते है । कल के दिन सुबह सुबह घर के बड़े बुजुर्ग परिवार के अन्य सदस्यों के ऊपर जल/पानी का हल्का छींटा मारते हैं । भगवान पर चढ़ा हुआ जल से उच्छरँगा करने को शुद्धता और आशीर्वाद माना जाता है । हलांकि  कीचड़ कादो से खेलने की यह परंपरा विलुप्त होता जा रहा है । बहुत सीमित स्तर पर सिर्फ गाँव देहात में बचा रह गया है ।गर्मी का मौसम आ चुका है । आम फल का सीज़न शुरू हो रहा है ।

एक जमाना था जब जुड़ शीतल नाम से प्रसिद्ध मिथिला के ख्याति प्राप्त पर्व धार्मिक अनुष्ठान के साथ साथ कई को समेटने में सक्षम था परंतु आज यह पर्व खुद अपनी अस्तित्व को भी सहेजने में असक्षम प्रतीत होता जा रहा है. कई कारण से यहां के लोग इस पर्व को अन्य परंपराओं की तरह भुलते जा रहे हैं। पहले जहां मिथिला के गांवों में जुड़ शीतल मनाने की कवायद 10-15 दिन पूर्व से ही आरंभ हो जाती थी।
खासकर नौजवान एवं बच्चे बांस की हस्तनिर्मित पिचकारी बनाने व उस पिचकारी को लेकर तालाबों में खेलने की तैयारी में जुट जाते थे। गांव के नौजवान एवं बच्चे दो टोली में बंट कर तालाबों के पानी में पिचकारी से एक दूसरे के ऊपर पानी उड़ेलने का खेल खेलते थे तो बड़े बुजुर्ग अपने अपने घरों के आसपास की कीचड़ की सफाई व तालाबों एवं कुआं की उड़ाही का कार्य भी खेल- खेल में संपादित करते थे। कीचड़ एवं गोबर एक दूसरे पर फेंकने की प्रथा जुड़ शीतल वर्षो से चलती आयी है। इस खेल में गांवों की महिलाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी। यह खेल सुबह के पहले पहर में खेला जाता था। माना जाता है कि इसका प्राकृतिक चिकित्सा के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण माना जाता है। जुड़ शीतल पर्व के दिन अहले सुबह घर की श्रेष्ठ महिला द्वारा सभी सदस्यों के माथे को पानी से शिक्त किया जाता है. जिसे जुड़ाया जाना कहा जाता है। कहा जाता है कि परिवार के बड़ों के आशीर्वाद से लोग पूरे साल खुशहाली की जिंदगी जीते हैं। विभिन्न ग्रंथों में इसकी चर्चा है. वहीं इस परंपरा को निभाये जाने के बाद हर कोई तमाम पेड़ पौधे की सिंचाई में जुट जाते हैं।

माना जाता है कि गरमी की बढ़ती तपिश से बचाने के लिए हर कोई संकल्पित है। फिर लोग नहा धोकर मिथिला की अति विशिष्ट व्यंजन कढ़ी और बड़ी के साथ चावल को भोजन के रूप में ग्रहण करते थे। इसके उपरांत दो बजते बजते लोग झुंड में लाठी, भाला, बरछी, फरसा आदि से लैश होकर वन में शिकार खेलने निकल जाते थे। शिकार में शाही, खरहा सहित अन्य खाद्य पशु पक्षियों की शिकार की जाती थी। यदि शिकार नहीं मिला या लोग शिकार करने में असफल रहे तो अशुभ माना जाता था. कहीं कहीं इस विशेष पर्व की विशिष्टता को भुनाने के उद्देश्य से इस दिन दंगल एवं कुश्ती की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती थी।शाम होते ही लोग भांग एवं चीनी की शरबत पीकर मदमस्त हो जाते थे। इसके बाद गांवों में लोग भजन कीर्तन का आयोजन करते थे। परंतु अफसोस की आज कल के युवक इसे महज एक इतिहास की कहानी ही समझते हैं क्योंकि आज जुड़ शीतल पर्व की लोकप्रियता पूर्णत: धूमिल हो गयी है। या यूं कहें कि युवा वर्गो में इस पर्व को लेकर उत्साह देखा ही नहीं जाता है।

इस प्रकार मनाये जूड-शीतल 
14 को सत्तू और बेसन का पकवान बनाये जिसे 15 को भी खायें 15 को दिन में रसोई की सफाई करें, चूल्हे न जलाये 15 को सूर्योदय से पूर्व बच्चों के सिर पर पानी डाले 15 को कम से कम एक पेड में पानी डाले 15 को पानी संचयवाले स्थान की सामूहिक सफाई करे15 को तुलसी की रक्षा के लिए उसके ऊपर जलपात्र बांधे15 को अन्न दान करें, जल पात्र भेंट करें

Thursday 12 April 2018

सफलता प्राप्त करना हमारी जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि हमारा अधिकार भी है- राजेश अग्रवाल

अपने जीवन  में सफलता प्राप्त करना हमारी जिम्मेदारी ही
नहीं बल्कि हमारा अधिकार भी है।

आज दुनिया में सफल और असफल लोगो में जो सबसे बड़ा अंतर है, वो है उनकी सोच का, कोई भी व्यकित अपने शारीरिक विकलांगता से उतना कमजोर नही हो सकता, जितना की वो अपनी मानसिक विकलांगता से कमजोर हो जाता है I  दुनिया के शीर्ष व्यावसयिक हस्तियों के विचार-प्रकिया/सोचने के तरीको के बारे में श्री राजेश अग्रवाल जी कहते है:-  मैं  उन 1%  व्यावसयिक हस्तियों की मानसिकता पर विचार कर रहा था। ये 1% लोग ऐसे सभी काम आसानी से बिना सकुचाये करते हैं, जिसके बारे में ये 99%  लोग सोच भी नही पाते है, या फिर उस काम से नफरत करते हैं I आज की सबसे बड़ी समस्या ये है की ये  99% अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकलना ही नही निकलना चाहते है, इनको बस 10 से 6 बजे तक काम करने की आदत हो जाती है, अगर कभी इनको 6 बजे के बाद काम करने को कहा जाए तो ये ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे आपने इनसे इनका किडनी मांग लिया हो, मित्रो आपकी सफलता आपके समर्पण पर निर्भर करती है I अगर आप किसी कार्य के प्रति समर्पित नही हो सकते तो आपको सफलता के सपने देखना बंद कर देना चाहिए I इतिहास गवाह है हर सफल व्यक्ति के सफलता का राज उसका अपने व्यवसाय के प्रति समर्पण हैI ये जो 99 लोग होते है, ये भीड़ का हिस्सा बने रहना पसंद करते है I मित्रो अगर आप भीड़ का हिस्सा बनते है तो आपको काम तो मिल जाएगा, लेकिन आपकी पहचान छीन जायेगी, इसलिए फैसला तुरंत करे की आपको भीड़ का हिस्सा बने रहना है, या फिर अपनी अलग पहचान बनानी है I ये 99 लोग अपने कार्य क्षेत्र से निकलते ही अपने दिमाग से सोचना बंद कर देते है,इनको नए लोगो से मिलना पसंद नही होता है, जबकि दुसरे तरफ 1 % लोग सोते हुए भी आगे की योजना के बारे में सोच कर सोते है, और सुबह उठते ही उस योजना को क्रियान्वित करने की दिशा में कार्य करते है I ये ऐसी जगह जाना पसंद करते है जहाँ बांकी के 99% कभी जाना पसंद नही करते, ऐसे लोगो की सबसे बड़ी खासियत होती है की ये जितना सोचते है उतना ही अपने सोच को क्रियान्वित भी करते है, और यही इनकी सफलता का राज है I ये 1% लोग हमेशा यही सोचते है की जीवन जितना बहुमूल्य है उतना ही अल्प है, अतः इसे सही दिशा में सही योजना के साथ व्यतीत करते है I वे विचारक की स्थिति में कम हैं, और अधिक कार्यवाही करते हैं। उन्हें पता है कि सफलता के लिए केवल एक ही जीवन है, इसलिए वे किसी भी सीमा में नही बंधते है I अब आप ये तय करले की आप कौन से समूह में है या रहना पसंद करते है I

Monday 2 April 2018

ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से अनजान ना बने रहे, इसे गंभीरता से ले, क्योंकि इसका कोई इलाज नही है-राजेश अग्रवाल


ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते कुप्रभाव से धरती पिघलने लगी है ।
ग्लोबल वार्मिंग – एक ऐसा विषय जिसने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। अगर आप अभी तक ग्लोबल वार्मिंग के कुप्रभावो से अनजान है तो इसे ऐसे समझिये की ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है, दुनिया भर के वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेगी और मौसम का मिज़ाज पूरी तरह बदल जायेगा, ऐसा इसलिए होगा की मानव आधुनिकीकरण के आड़ में लगातार प्रकृति से छेडछाड़ कर रहा है। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया की कितनी बड़ी समस्या है, यह बात एक आम आदमी समझ नहीं पाता है। उसे ये शब्द टेक्निकल लगता है। इसलिये वह इसकी तह तक जाने की बजाय अपने रोजी-रोटी में व्यस्त रहता है, और इसे एक वैज्ञानिक परिभाषा मानकर छोड़ दिया गया है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि फिलहाल संसार को इससे कोई खतरा नहीं है, लेकिन ये विषय इतना भयानक है की समाज के सभी बुद्धिजीवीयो को सोचने पर मजबुर कर दिया है। अभी तक भारत में ग्लोबल वार्मिंग शब्द समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुँच पाया है, लेकिन विज्ञान की दुनिया की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं। ये 21वी शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरने वाला है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है। आज मोटिवेशनल स्पीकर एवं लाइफ कोच श्री राजेश अग्रवाल जी ग्लोबल वार्मिंग पर अपना विचार साझा कर रहे है, आइये जानते है इस विषय पर उनका क्या कहना है । कई बार यह मेरे दिमाग में आता है कि अभी तक जो ग्रह मानव से मुक्त है, और पूरी तरह से अपने प्राकृतिक स्वरूप में है, यानी की जैसी बनायीं गयी थी, वैसी ही है, क्योंकि वहां अभी तक आधुनिक मानव नही पहुंचा है, इसलिए कोई छेड़छाड़ नही हो पाया है, वो कभी ग्लोबल वार्मिंग का सामना नहीं करेगा। ये ग्लोबल वार्मिंग हमारे द्वारा धरती पर किये गये अत्याचारों का नतीजा है । कई वैज्ञानिक मेरे विचारो से असहमत हो सकते हैं, क्योंकि मेरे पास कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं, लेकिन मुझे लगता है कि अगर कभी प्रकृति की अदालत लगेगी, तो पता नहीं कि हम मनाव किस तरह की सजा के हकदार होंगे। हमें ये भी नही पता कि जब कोई मिसाइल ओजोन परत में जाता है तो किस प्रकार हमे प्रभावित करता है। आज दुनिया वैश्विक शांति की बात तो करती है लेकिन साथ में नित्य नए मिसाइल बनाते जा रहे है। हम प्रतिदिन इस रफ़्तार से नए नए मिसाइल बनाते जा रहे है की अब वह दिन दूर नही जब हम खुद ही पूरी दुनिया को बर्बाद कर देंगे। ये परिस्थिति वास्तव में बहुत ही भयावह है और अब विश्व के सभी राष्ट्रों को एकसाथ मिलकर इस धरती माता को बचाने के लिए सभी विनाशकारी हथियारों को त्याग देना चाहिए। मै उस भयानक परिवेश के कल्पना मात्र से सिहर उठता हूँ, क्योंकि वो परिस्थिती इतनी विकराल होगी, की उस समय कुछ भी सोचने का वक्त हमारे पास नही होगा, अतः हमे अभी और आज से ही इस प्रकृति को बचाने के हर जरुरी प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे कम किया जा सकता है। हमें अपने धरती माता को सही मायनों में ग्रीनबनाना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगे। मै आज आप सबसे एक विनती करना चाहता हूँ की आपके घर में जब भी कोई मंगल कार्य हो तो उसकी निशानी एक पेड़ लगाकर संजोये, अगर आप शहर में रहते है और आपके पास पेड़ लगाने के लिए जमीन नही है तो आप ये सुनिश्चित करे की आपके लिए आपका प्रतिनिधि आपके गाँव या जहां भी आपको सुविधा हो वहां एक पेड़ लगाये, और साथ में आप उस पेड़ के समुचित विकास की भी व्यवस्था करे, क्योंकि ये बड़े बड़े काम्प्लेक्स और फ्लैट्स हमारे किसी काम नही आयेंगे जिसके सौन्दर्य में हम लाखो करोड़ो खर्च कर देते है । हमे ये समझना होगा की हमारे घर का सौन्दर्य महंगे टाइल्स और कालीन से नही बल्कि हरे भरे पेड़ और स्वच्छ प्रकृति से है ।

Sunday 1 April 2018

सफल जीवन की कामना तो सभी करते है, पर कितने लोग सफल हो पाते है, आइये जानते है श्री राजेश अग्रवाल जी से


मोटिवेशनल स्पीकर और लाइफ कोच श्री राजेश अग्रवाल जी कहते है की जीवन में लक्ष्य दो प्रकार के होते है-: लक्ष्यों को जीवित करना, और लक्ष्य को पुनर्जीवित करना।    दैनिक जीवन के लिए भोजन प्राप्त करने में व्यस्त रहना जीवित लक्ष्य कहा जाता है, वही दैनिक जीवन से परे हटकर कुछ अलग सोचना और उसको प्राप्त करने के लिए मेहनत करना  लक्ष्य को पुनर्जीवित करना कहलाता है । विद्यार्थी जीवन में हर किसी का कुछ न कुछ लक्ष्य होता है, पर ये बहुत ही दु:खद है की 95% लोग विदार्थी जीवन के दौरान उचित मार्गदर्शन के अभाव में आगे चलकर दाल-रोटी तक में ही सिमित रह जाते है I उनको अपने सपनो के बारे में सोचने का वक्त तो होता है पर वो सोचना ही नही चाहते है। ऐसे  लोगो की हमेशा यही शिकायत रहती है, की ऑफिस के कार्यो में इतना व्यस्त हूँ की ये सब सोचने के लिए समय ही नही बचता, और फिर ये  नौकरी करते हुऐ रिटायर हो जाना ही अपने जीवन का लक्ष्य समझ लेते है । ऐसे लोगो के लिए हमारी सहानुभूति है I हम इस दुनिया के हर व्यक्ति को आर्थिक व मानसिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध है I इस प्रकृति ने सबको एक समान प्रतिभा तो नही दिया है, लेकिन सबको एक सामन अवसर जरुर दिया है अपने सपनो को साकार करने के लिए I
आज के प्रतिस्पर्धात्मक जमाने मे दो तरह के लोग होते है, पहले वो जिनके खुद के सपने होते है, और वो अपने सपने को पूरा करने के लिए कुछ भी कर गुजर जाते है, और दुसरे वे जिनके खुद के कोई सपने नही होते और वो दुसरे के सपनो को पूरा करते करते गुजर जाते है। एक अनुसन्धान के अनुसार सिर्फ 5% लोग अपने सपनो को पूरा करने के लिए दुनिया के 95% लोगो को इस्तेमाल करे रहे है, क्योंकि इन 95% लोगो के खुद के कोई सपने नही है, और अगर है भी तो उसको पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध नही है । 
मित्रो अगर आप अपने लक्ष्यों को पुनर्जीवित करना चाहते है तो सबसे पहले अपने सभी सपनों की एक सूची बनाये जो आप अगले 5-10 वर्षों में प्राप्त करना चाहते हैं, यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की आपके सपने आपके क्षमतानुसार/वास्तविक ही होना चाहिए I अब आप प्रत्येक दिन अपने लिस्ट को देखकर ये निश्चित करते चले की आप अभी भी अपने सपनो के रास्तो पर है, अगर अपने सपनो को पूरा करने में कठिनाई हो रही हो तो अपने तरीके बदले, इरादे नही I इतिहास गवाह है की दुनिया में वही लोग सफल हो पाते है जो अपने सपनो को पूरा करने हेतु एक निश्चित समाय सीमा निर्धारित करते है, अगर आपने सपनो का लिस्ट तो बना लिया, और अपने तरीके नही बदले, तो आपको सफल होने में बहुत वक्त लग सकता है, और ऐसा भी हो सकता है की आप कभी सफल ही ना हो पाए, इसलिए ये बेहद जरुरी है की हमे अपने कमजोरियों और मजबूतियो के बारे में जानकारी हो I हर इन्सान की कोई ना कोई कमजोरी/मजबूती होती है, अक्सर हम अपने कमजोरियों से अनजान होते है और एक ही गलतियों को बार बार दुहराते है,अगर आप एक बार अपनी कमजोरियों को पहचान ले तो आपकी सफलता की यात्रा और आसन हो जायेगी I इस आधुनिक युग में अब ऐसे तकनीक भी मौजूद है जो आपकी मानसिक क्षमता और प्रतिभा के साथ साथ आपकी कमजोर/मजबूत क्षेत्र को उजागर करता है, तो अब देर किस बात की, अभी कॉल करे 9471818604, और अपने कमजोर/मजबूत क्षेत्र के साथ साथ अपनी छुपी हुई प्रतिभा को उजागर करे I अमेरिका, जापान, चीन, कोरिया समेत विश्व के कई देश इस आधुनिक विज्ञान की मदद से अपने छात्रो के क्षमता का सही जगह पूरा पूरा उपयोग कर रहे है I
ये लेख पढने के बाद मुझे आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है की आप भी अब अपने सपनों की एक सूचि बनायेंगे और अपने छुपी हुई प्रतिभा और कमजोरियों को उजागर करने हेतु आगे आयेंगेI
आपको मेरी तरफ से और राजेश सर के तरफ से अग्रिम शुभकामनाये, अगर आपको ये लेख अच्छा लगा तो अपने उन मित्रो से भी शेयर करे जिन्हें आप वास्तव में सफल होते देखना चाहते है I